पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०७
देश के अग्रसर और समाचार पत्रों के सम्पादक

सामर्थ्य से परे है। व्यापार के निमित्त पूंजी की आवश्यकता है यह देश के नवयुवकों के पास नहीं है। भारतवर्ष के समग्र स्कूलों में घूम कर देखिये किन किन कठिनाइयों और दुःखों को सह लोग किसी प्रकार विद्याभ्यास कर रहे हैं। और विद्यालयों से उतीर्ण होने पर यदि उन्हें पूंजी की पुष्टता होती तो चारों ओर नोकरी नोकरी की चिल्लाहट न सुन पड़ती निदान ऊँची नीची नोकरी कर लेना ही उनका परम कर्तव्य हो रहा है। और प्रकार किसी कोई रीति चल ही नहीं सकती। जीविका के द्वारों को देश के व्यापार को बढ़ाना धनिकों के हाथ में है।

यदि यह कहिये कि जिस प्रकार काँग्रेस के अर्थ नाना स्थानों में धूमधूम लोगों को उत्तेजना दे प्रति वर्ष कई सहस्र मुद्रा एकत्रित करते हैं, उसी प्रकार यदि परिश्रम कर लोगों के चित को व्यापार की ओर आकर्षित करें तो क्या व्यापार की उन्नति न हो? यह प्रायः सभी जानते हैं कि कांग्रेस को, जिससे बहुत कुछ देश को आशा है, केवल वही विशेष समझ सकते हैं जिन्हें किसी प्रकार की शिक्षा मिली है, तो उसे छोड़ दीजिये और सर्वधारण के योग्य धर्म सम्बन्धी विषयों को लीजिये; तो चाहे कैसहू भारी से भारी विद्वान उपदेशक वा शिक्षक क्यों न हो और कोई सभा किसी नगर में करने की इच्छा करे तो क्या उसके आह्वान् पर ढीली धोती ढीले देशी महाजन कभी आ सकते हैं? सारांश बात यह है कि किसी प्रकार की उन्नति की आशा पुरानी चालके मनुष्यों से सम्भव नहीं हो सकती! जो बुलाने से किसी सभा में न आवेगे, न किसी विषय की उन्नति के अर्थ और प्रकार से सहायता देंगे, और न घर जाने से और प्रार्थना करने से भी किसी प्रकार कैसह उपयोगी उद्योग के अर्थ उत्सुक हो योग देंगे उन्हें कैसे कोई समझा-बुझा सकता है। कांग्रेस के मुख्य कार्यकर्ताओं को यह दुःख प्रति वर्ष झेलना पड़ता है। अन्त को ऐसे निपट निकम्मों के द्वार को जाना और उनसे किसी प्रकार की सहायता मांगना उन सभों ने छोड़ दिया है। रह गये वो जो देश के गिने प्रतिष्ठित धनवान है जिनके इस ओर ध्यान दिलाने के अर्थ हम लोग कई बार लिख चुके हैं और जिनकी इस ओर दृष्टि फिरने से सब कुछ सम्भव और सुलभ हो सकता है, 'उनको किसी प्रकार ऐसे परमावश्यक विषय में कुछ करने को देश के युवक उत्सुक कर सकते हैं समझ नहीं पड़ता। उनकी तो उनके यहाँ पहुँचने तक की नौबत नहीं हो सकती। फिर वे अपने नाना सुख की सामग्रियों को