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प्रेमघन सर्वस्व

उदासीन वृत्ति का अवलम्बन किये चुटकी बजा बजा कर जृम्भायमान हो रहे हैं; मानों उनके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगाते।

ईसाई, मुसाई, यवन म्लेच्छादि हमारे धर्म कर्म आचार विचार के पूरे शत्रु हैं, और ब्राह्म समाजी 'आर्यसमाजी, तथा अँगरेज़ी शिक्षा के दुष्ट प्रभाव से विकृत मस्तिष्क वाले काले साइब लोग वा जिन्हें नकली अँगरेज़ कहना चाहिये, आधे शत्रु हैं। अथवा यों कहिये कि वेदाना दुश्मन, और ये नादान दोस्त हैं, क्योंकि उनका आघात केवल धर्म ही पर होता है और वे केवल हमारे विश्वास का नाश किया चाहते, परन्तु येतो आचार, विचार, व्यवहार और जातीय संस्कार आदि सभी को समूल नाश करने की ताक में अहर्निश पड़े रहते है। यदि उन्हें हममें एक दोष दिखाई पड़ता, तो ये उन्हें सौ दिखलाने को सन्नद्ध रहते, यदि वे हमारी एक विषय में निन्दा करते तो ये निन्दा सहस्त्र नामस्तवराज का पाठ ही सुना चलते। कुशल इतनी ही है कि यद्यपि राजा भिन्न धर्मी है तथापि न्यायवान है, और वही न्यायाभिलाषी दल है, यद्यपि कसरकोर किसीमें नहीं है, और कौन जाति वा समाज छिद्र शुन्य है, पर और का देखने दिखाने वाला कोई हो वा न हो, पर हमारे लिये तो अवश्य ही इतने हैं; अस्तु यदि वस्तुतः न्याय ही हो तो चिन्ता नहीं। परन्तु नवीन अनुष्ठान में न्याय की इच्छा रखने पर भी न्यायकर्ता से प्रायः अन्याय भी हो जाया करता है, फिर अत्यन्त विचित्रता तो यह है कि पूर्वोक्त दल जिन्हें हमने नादान दोस्त कहा है, आस्तीन के सर्प से सदा हम से पृथक रहकर भी हमारे अग्रसर बनकर हमारे हित के मूल में मीठी छुरी़ चलाते और अत्यन्त शोक का स्थल यह है कि हमारे मुख्य समाज के लोग जिन्हें सनातनधर्मावलम्बी कहते हैं उदासीन भाव के अवलम्बन करने वाले हैं उनकी एक प्रकार नित्य नूतन हानि और सर्वथा सर्वनाश की सामग्री निपट सन्निकट भी देख पड़ती, तो भी तो कुछ उद्वेजित वा आत्मरक्षा के लिये चेष्टित नहीं दिखलाते, फिर भला कहिये तो इससे अधिक आश्चर्य और शोक का स्थान अन्य कौन होगा? इनके अतिरिक्त एक छोटा सा दल स्वदेश हितैषियों का भी है, जिनके दो भेद हैं। अर्थाथ सच्चे और झूठें, पूर्वोक्तों की संख्या बहुत ही न्यून है, और पश्चादुक्तों की अधिक जिनको केवल अपनी कीर्ति वा प्रसिद्ध मात्र से प्रयोजन है। उन्हें देश के वास्तविक हित चिन्तनकी उतनी उत्कंठा नहीं जितनी अपने ख्याति और आन्दोलन के सिद्धि की है। वे इसकी कुछ भी चिन्ता नहीं करते कि कदाचित् हसारे प्रस्तावित विषय के कार्य में परिणत