पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२६१

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भावी भारतीय महा-सम्मिलन


अबकी बार की कांग्रेस विशेष रुचिकर, शोभाशाली और उपयोगी होगी। क्योंकि वर्ष भर से भारत की क्या, समस्त संसार की, आँखें बंगाल के ऊपर हैं। सब की उत्कण्ठा उसके असीम साहस सम्पन्न सुयोग्य सन्तानों से मिलने और उनकी गाथा उन्हीं के मुखों से सुनने की है। दुःख से भुने बङ्गाल को भी अपने समस्त देश के चुने नेताओं और सभ्यों के समक्ष पाह भरे मुंह खोलने का अवसर मिलेगा। जब कि ईश्वर और राजा दोनों दीन प्रजाओं की दुहाई सुनकर भी अनसुनी कर विपक्षी से बन जाते हैं तो औरों की सहानुभूति और आश्वासन ही दुखियों के घावों को पुजाने में समर्थ होते हैं। इसी से अपनी लेहभरी उपस्थिति में उनका दुःख भुलाने को कौन सहृदय जन परमोत्सुक नहीं है। हमारे देश भर को और सब से पहिले बङ्गाल को, यह भी अब निश्चय हो गया है, कि व्यर्थ के वितण्डाबाद और गला फाड़ने में कुछ प्रयोजन नहीं होता, कार्य तत्परता में ही समय देश का कल्याण हैं। एक चित्त हो, कटिबद्ध होने ही से भारी कार्यों का होना सम्भव है। हमारे देश का हाथ चिलायत की कलों ने बांध रक्खा है। हमारी मूर्खता ही ने सत्र ओर से हमें लाचार कर बेकार बना दिया है। हम कभी इस दशा में उनकी बराबरी नहीं करते, इससे हमें समाजबद्ध हो अपने व्यवसाय को बढ़ाना पड़ेगा। इसी से इण्डियन नेशनल-कांग्रेस ने अब व्यापार की ओर विशेष ध्यान देकर अपने अधिवेशनों के साथ साथ प्रदर्शनियां खोलनी प्रारम्भ की है। इससे देश भर की कारीगरी के नमूने एकत्र देख पड़ते हैं, और क्रमशः उत्तम कारीगरी की खींच होती और शिल्पियों को इससे हर प्रकार विशेष लाभ की सम्भावना होती है।

स्वदेशी आन्दोलन ने हमारे देश के कारीगरों को उन्निद्रित कर उन्हें मरते मरते बचाया है। हाथ पर हाथ धरे ऊँघते, अपने माल की खपत न देख, अपनी प्रारब्ध पर खीझते, न जाने कितने रोज़गारियों के मुरझाये गालों पर अब सुर्खी आ गई है। उन के परिवार अब सूखी रोटियों से पेट भर स्वदेशी आन्दोलनकारियों और उसके आग्रहियों को असीस दे रहे

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