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प्रेमघन सर्वस्व

न कर केवल इसी कटु वचनों द्वारा उन से छेड़खानी कर कृतकृत्य होने की आशा रखते हैं। आशा है कि वे तृतीय श्रेणी के प्रदेश से डरकर उदारता का परिचय देंगे। रहे वे जो ईश्वर ही के घर से तृतीय सत्कार गाली गलौज के पात्र या कुपात्र हैं, उनकी तो कथा ही अकथ है। वे सदैव लज्जा का पट उलट बेसुध औंधे पड़े रहनेवाले, पत्रों के निवाले निगलते ही चले जाते नहीं आधाले और डकारते तक नहीं, सदैव पराये पत्र पत्रिका को निज पिता की सम्पत्ति समझते दाम के नाम की भी चिन्ता चित्त में नहीं लाते। कितने ही तकाज़ों के पत्र और कार्ड नित्य जिनके रद्दीदान में पड़े सड़ा करते और वे कहीं से कुछ भा कान पूछ नहीं दिलाते! बहुतेरे उनमें ऐसे भी नर पिशाच देखने में पाते कि जो पाँच वर्ष पर्यन्त निरन्तर पत्रिका पढ़ वेल्यूपेएबिल पार्सल के मूल्य देने से मुकर कर अधिक हानि के घलुये दिलाने के भी कारण होते। तब सिवाय सौ गाली को छोड़ वे अन्य और किस सत्कार के पात्र हैं और उन्हें छोड़ तीसरे का स्वत्व किसे पहुँच सकता है? सुतराम् उनके इधर और उधर सात पुश्त को लाख लाख गाली हैं। आशा है कि अब अपने यथोचित सत्कार को पा वे प्रसन्न हो किञ्चित कांख फूँख कर अपनी संकुचित कृपा को विस्तार दे आगामि में इसकी आवश्यकता न लायें।

इन सब से विलक्षण कुछ ऐसे भी व्यक्ति विशेष हैं कि जो इन अन्तिम श्रेणी वालों के भी दादागुरू हैं। जिनसे प्रथम तो हम तक़ाज़ा ही नहीं कर सकते और यदि करते तो वे केवल खीस बा कर केवल है—हैं की हिनहिनाहट सुनाते वा कहते कि हम तो इष्ट है, मित्र है, हमसे मूल्य! वे यह भी नहीं जानते कि अन्ततः कागज रोशनाई और डाक का महसूल कुछ भी तो देना चाहिये, वह खैराती खाते में भी जाते लजाते। पत्र प्रेरकों में भी सूरत नहीं दिखाते फिर ऐसों को कहिये कि क्या कहें? और उन्हें कौन सी गाली दें कि जो निर्लज्ज शिरोमणि विधाता के घर के बने हैं! अस्तु, ऐसे कंजूस मक्खीचूस ग्राहक भी क्या कुछ शरमाने की कृपा दिखायेंगे!

हमारे तरफ से जो त्रुटियाँ हुया करतीं उसका हम स्वयम् शोधन कर, पूरा मूल्य नहीं चाहते, वरञ्च हिसाब से घटाते हैं। यदि वह चाहे कुछ जुर्माना भी लें किन्तु क्या वे कुछ न देकर ही पत्र-पठन-न्याय संगत मानते हैं? वे पत्रिका लौटा ही देकर आगामि से क्षति न पहुँचाने की भलमनसाहत दिखा सकते थे। जो हो, आशा है कि हमारे सज्जन पत्र-पाठक समूह इस होली की गाली गलौज से अवश्य शिक्षा ग्रहण कर अपनी वास्तविक कृपा दिखायेंगे।