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पुरानी का तिरस्कार और नई का सत्कार

विशेष हो रहा है? हंसी हंसी में भी कहीं उछाल दें, तो और तो और, घण्टों बांधने ही में लग जायं। अतः फेल्ट कैप डाट चले कि जो गिरने में बिलम्ब करे और गिरने पर न तो बाल बिगड़े न इज्ज़त जाय, वरञ्च नंगे सिर हो जाने पर और भी प्रतिष्ठा बढ़े। किन्तु डर यह अवश्य है कि वे उसकी गर्मी से कहीं अपना रहा सहा मस्तिष्क ही न गला दें। अस्तु, यह सब तो पुराने बहिष्कार हैं, नई सभ्यता ने अब और ऊपर चढ़, उनकी शिखा भी कतर कर उन्हें टेलर हिन्दू कहलाने की अपकीर्ति से बचाया और कदाचितू यह सुझाया कि यदि कोई उसे पकड़ लेगा, तो तुम क्या करोगे? सुतराम् इस मूढ़ता का विसर्जन कर दो। वास्तव में आज तक लोग उसी को पकड़ पकड़ कर इन्हें चपतियाते चले ही जाते हैं। क्या अब इस बहिष्कार से उसका भी बहिष्कार सम्भव है।

मुसलमानों ने भोलमाल जुब्बा कुरता, एश और क़बा पहिनना छोड़ा—कदाचित् इस अभिप्राय से कि जो उन्हें राह चलते देख बैल या घोड़े भड़कते और कुत्ते भी भौंकते हुए पीछे लग जाते,—बरञ्च कभी कभी नोच खसोट भी आरम्भ कर देते थे, अब न करें; अतः पीछे फटी काली माग कोट पहननी प्रारम्भ की, जिससे कि और सुविधा को छोड़ मेढ़क से उछलते कूदते जहाँ चाहें, बिना प्रयास शीघ्र घुस जायं और किसी को कुछ भी खबर न हो। अम्मामा खूंटी पर रख, लाल नमदे वाली तुर्की टोपी पहन, मानों मिथ्या स्वाधीनता सूचक पूंछ लटका ली, जिसमें कि तम्बाक के पिण्डे पर खुसे लाल मिर्च की शोभा होने के सिवा कदाचित् मच्छर और मक्खियों के उड़ाने में भी कुछ सहायता मिलने के अभिप्राय से; अथवा कौन जाने कि हिंदुओं की कटी.शिखा को उन्होंने अपने सिर पर जमा लेनी भी उचित समझा हो। गरारेदार चौड़ी मुहंडी वाला पाजामा छोड़ा, कदाचित् यह समझकर कि हवा के एकही झोंके में पर्दाफाश होना सदा सुलभ रहता है, योही अनेक आवश्यक अवसरों पर इज़ारबन्द खोलने और बांधने के दुःख से पतलून चढ़ा चले। किन्तु उनकी बिचली चाल छकलिया अंगरखा, औरेव पाजामा और दुपलड़ी टोपी की निजाकत न आई। केवल शर्ट पर नेकटाई लगाई जाने से वह मजा कब आ सकता था, क्योंकि उभरी छाती और साफ पेटी ही जब न दिखाई पड़ी, तब मजा ही क्या बाकी रहा। यद्यपि उन्होंने अब अपनी प्यारी दाढ़ी भी मुंडानी प्रारम्भ कर दी इस