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प्रेमघन सर्वस्व

उसके अर्थ वह अपने को साधारण जनों से भी अशक्त मान बैठे हैं। इनमें से एक ने जैसी कुछ करतूत इसके विरोध में दिखाई और जैसी राजभक्ति उनकी उसमें झलकी सभी जानते हैं, और जो विघ्न इसमें हुए वह तो भुला देने योग्य है, परन्तु कुछ मुसलमानों को इसके विरोध के कारणों से खड़े हो जाना और अनपढ़ों को हिन्दुओं के विरुद्ध विरुद्ध शिक्षा देना बहत ही खेद जनक परिणामोत्पादक हुआ, जो भूला नहीं जा सकता। लोग गत उपद्रवों के विषयमें सोचते और आश्चर्यित होते हैं कि जो साथ-साथ आज कई सौ वर्षों से रह पाये, इतनी हेल-मेल जिनमें उत्पन्न हो गई थी कि दोनों के धर्मों की बहुत सी बातें एक दूसरे ने ले ली थी, वे कैसे आज आपस में गला काटने को तत्पर हो गये हैं, उन्हें यह जानना चाहिए कि द्रोह जब आपस में एक बार उत्पन्न हो जाता है लोग एक दूसरे को चिढ़ाने के यत्न में लग जाते हैं, परन्तु काँग्रेस इन विन्नों के परे अब हो गई है। इन विघ्नों से जो हानि उसकी सम्भव थी वह हो चुकी अब उसके जीवित रहने में कोई शंका नहीं है, उसके वचनों का आदर गवर्नमेण्ट को करना ही होगा। वह सभा किसी एक प्रान्त के बनाए लोगों की नहीं है। देश भर के चुने योग्य पुरुष एकत्रित होते हैं, वे देशके प्रतिनिधि पूर्ण रूप से हैं, विरोधियों का यह कहना कि कांग्रेस कदापि देशमुख नहीं हो सकती, अनर्गल है। यह उसके सभ्यों के कार्य और विद्वत्ता से ही प्रकट है, इस विषय में बहुत कुछ कहा गया है। यहाँ उसके लिखने की आवश्यकता नहीं है परन्तु विरोधियों के विश्नों को डाक कर जब यह सकुशल अपनी निर्विघ्न अवस्था को पहुँची तो इसके सहायकों में कुछ वैसी नियमता हम नहीं देखते, यदि वैसे ही होती तो मिस्टर इय म को उत्तनी कड़ी बातें न सुनानी पड़ती जो उन्होंने अन्त को विदा होते कही है और जिसे सुन हमारे मृतप्रायः विरोधियों के पीले मुख पर भी मुस्कुराहट आ गई है। काँग्रेस की शाखा जो इंगलैंड में खड़ी की गई है उसके अर्थ भी हम लोग सदैव संकुचित रहते हैं। उसके व्यय का पूर्ण प्रबन्ध हर एक प्रान्तों की काँग्रेस कमेटियों का किया नहीं हो सकता। जो कुछ हमारे हित के कार्य लंदन कांग्रेस कमेटी ने इस वर्ष किया है वह पाठकों को इण्डिया पत्र के देखने से जान पड़ेगा। निश्चय यदि पूर्ण रूप से वहाँ की कमेटी का प्रबन्ध कर दिया जाय तो वह बातें सब साध्य हो सकेंगी जो हमारी परमस्पृहणीय है। यदि आलस्य को छोड़ एक बार फिर वैसे ही तत्परता से देश इस कार्य के करने को सन्नद्ध हो जाय जैसी इसने इसके प्रारम्भ में दिखाई थी और कांग्रेस