पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३२

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खण्ड ६ में हमने उनके सम्पादकीय अग्रलेखों को स्थान दिया है और इनके अन्तर्गत उनके परम प्रौढ़ लेख हैं जो उनके समय के इतिहास तथा उनकी प्रतिमा को स्पष्ट रूप से हमारे सामने ला देते हैं। नागरी नीरद तथा आनन्द कादम्विनी दो ही आपके उमड़ते विचारों के प्रकाशन के मार्ग थे और उन्हीं के प्रधान प्रधान अग्रलेखों को मैंने इस संग्रह में स्थान दिया है। प्रेमघनजी के नोट कैसे होते थे, उनके विज्ञापनों के प्रकाशन की क्या शैली होती थी, वे स्थानीय सम्बादों को किस प्रकार प्रकाशित करते थे तथा वे दूसरे पत्रों में समाचार जो छपने को भेजते थे उनका क्या रूप होता था इसका पूर्ण ज्ञान हमें "पंच के विज्ञापन", "स्थानिक संवाद", "प्रेषित पत्र" शीर्षक उद्धरण से स्पष्ट हो जायेगा! डा॰ ग्रियरसन तथा श्रीधर पाठक को प्रेमघन जीने जो दो पत्र लिखे थे, मेरे पास थे, उनको मैंने इसमें स्थान दे दिया है दुःख है कि प्रेमघन जी के और पत्र व्यवहार मुझे प्राप्त न हो सके।

प्रेमघन जी के समय की बहुत सी बातों को जानने के लिए तथा इस अन्य को सुचारु बनाने में मुझे अपने पूज्य पिता जो से तथा अपने बड़े दादा जी से बड़ी सहायता मिली है जिसके लिए मैं उनका परस अभारी हूँ।

स प्रकार प्रेमधन सर्वस्त्र भाग २ हिन्दी साहित्य के समक्ष प्रकाशित होने जा रहा है, आशा है लोग उसका समुचितं आदर करेंगे।

प्रेमघन जी का स्मरण हिन्दी साहित्य के प्रथम उत्थान का स्मरण है।

शीतल सदन

मसकनवाँ
दिनेश नारायण उपाध्याय गोण्डा

६.१२-४६