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प्रेमघन सर्वस्व

पारस्परिक स्नेह वृद्धि का यत्न करना और एक दूसरे के लाभ और प्रतिष्ठा के बढ़ाने में यत्नवान होते, अपनी छिन्नभिन्न शक्ति को दृढ़ करने का उपाय करना चाहिए। क्योंकि जब तक हमारे समूह की शक्ति सम्मिलित न होगी, हमारे सबी प्रयास निष्फल होंगे और किसी कैसे ही आवश्यक प्रस्ताव का यथार्थ आन्दोलन और उसका कार्य में परिणत होना परम दुःसाध्य होगा जो लोग जगत् को उपदेश देने के गुरूतर कार्य के भार को अपने सिर पर लेना चाहते हैं उन्हें प्रथम अपने दोषों को दूर करना चाहिये। निदान अब इसके शमन के अर्थ कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि जिसमें पूर्व द्वैष दूर होकर नवीन स्नेह उत्पन्न हो और वह कदाचित परस्पर मिलने में बहुत सुलभ हो सकता है। ऐसी अवस्था में इस भाषा के समाचार पत्रों के सम्पादको का समाज स्थान अन्य और भाषाओं के पत्र सम्पादकों के समाज से अधिकतर आवश्यक और उपयोगी है।

यों भी जब कि हमें अपनी भाषा देश या जाति की यथार्थ उन्नति के अर्थ समयानुसार उचित आन्दोलन और संशोधन करना इष्ट हो, तो प्रथम परस्पर निज सुयोग्य सहयोगियों की सम्मति से स्थिर करके अनुसरण करना कहाँ तक श्रेयस्कार होगा सहज ही समझा जा सकता है। किसी एक स्थिर विषय पर एक साथ सब समाचार पत्रों के आन्दोलन का प्रभाव अवश्य ही बहुत अधिक होता है। परस्पर एक दूसरे से मिलकर लोग भाँति भाँति के लाभ से न केवल स्वयम् लाभवान हो सकते बरञ्च देश का बहुत कुछ कल्याण कर सकते हैं। अस्तु यह तो इतना बड़ा विषय है कि जिसके लाभों का गिना देना एक प्रकार कठिन है। सारांश हमारी भाषा के पत्रों के सुधार तथा इसके साहित्य की उन्नति के अर्थ सम्पादक समाज जिसके साथ एक साहित्य समिति भी सम्मिलित रहे, होना परमावश्यक है। योंही उसका समय और स्थान सदैव इण्डियन नेशनल काँग्रेस के साथ ही स्थिर करना उचित और सुगम समझ पड़ता है। सुतराम् जो कि आगामी काँग्रेस कलकत्ते में होगी और राजधानी होने के अतिरिक्त वहाँ से हमारी भाषा के अनेक शक्तिशाली पत्र भी प्रकाशित होते हैं, अतएव वही अबके इसका प्रथम अधिवेशन भी होना चाहिये और वहीं के किसी बड़े पत्र के सम्पादक वा स्वामी के इसके प्रबन्धादि का भार भी लेना उचित है। आशा है कि अन्य सहयोगी इस पर अपनी सम्मति प्रकाशित कर ऐसी चेष्टा करेंगे कि अब के इसका अधिवेशन अवश्य हो।