पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३७

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नागरी भाषा (या इस देश की बोलचाल की भाषा)

और असभ्य ग्राम और दिहाता की घरऊ बातचीत की भाषा और प्राय स्त्रियों के नाज व अन्दाज के कारण नजाकत वज दारी से रहित न हो प्रचलित थी। कि आज तक संस्कृत के नाटकों में स्त्रियों की बोली प्राकृत ही रहती है, और इसी प्रकार सूरसेनी, मागधी, पैशाची, इत्यादि प्राचीन भाषा देशकाल के अनुसार प्रचलित और नष्ट हो गई।

शारांस यह कि सदा से एक नागरी और दूसरी ग्राम्य भाषा प्रचलित रही। परन्तु अत्यन्त आदिकाल में जिसे सृष्टि का आदि कहो वा सत्ययुग, मनुष्यों के पूर्व अवस्था का प्रथम समय अथवा सभ्यता की पहली झलक देख पड़ने की बोली उस समय केवल एक बोली बोली जाती थी। क्योकि वह इसके प्रादुर्भाव का समय था, मानो तब इस बीज अर्थात् सार्थक शब्द ने केवल एक ही अकुर निकाला था कि जिसका नाम देववाणी अर्थात् बेदभाषा है। इस वेदभाषा अर्थात् देववाणी का संस्कृत से बहुत कम सम्बन्ध था, बल्कि उसको पहली अश्वा पुरानी संस्कृत कहना योग्य है कि जिससे अन्न के संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों में (सो भी केवल वे कि जिन्हे उस पूर्वाक्त अर्थात् वेद भाषा के ज्ञान की समस्त सामग्री और अङ्गो से जान है) छोड़ कदापि साधारण संस्कृत के पण्डित नहीं समझ सकते, राजपाट सरकार दार, हाट बाज़ार और सर्व साधारण या आम वा खास क्या सभ्य और क्या असभ्य, क्या नागरिक और क्या ग्राम्य, सब इसी की बोली बोलते और वर्तके, स्या कविता क्या साधारण लेख वा धर्म पुस्तके सब, की सब इसी मे लिखी जाती थीक्षं। साराश यह कि समस्त ससार मात्र की भाषाओं की माँ कहो या दादी, खान कहो वा मूल (जड़) अथवा मूल का बीज रूप सब पूर्वोक्त रीति और वर्णन के अनुसार प्रथम ही अकेली इस पर्वत भूमि भरत खएट में अखण्ड प्रताप से युक्त हो जन्म ग्रहण कर अपना राज्य स्थापन किया, और समस्त प्रकार के मनुष्यों के उपकार और ज्ञान का उदय कराने वाली और लाभ पहुँचाने वाली लौकिक और पारलौकिक अशेष विद्याश्यों को इसने प्रकाश मे किया। इसी भाषा के बोलने वाले ऋषियों ने बासो की पोपियों और केवल नेत्रोही के द्वारा निरजन जङ्गलों और पर्वतों के शृङ्गों पर अकेले अपने बुद्धि की तीक्ष्णता से सब तारामणों और नक्षत्रों को पहचाना, उनकी गति और चाल के महाकठिन और असंख्य हिसाबों को उँगलियो पर गिन गिन ठीक कर ऐसा शुद्ध बताया कि आज तक पाव रत्ती का विरोध कही से, न असर कि जिनको आधुनिक बड़े