पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४६
प्रेमघन सर्वस्व

व्यापारादि कार्यों के न्यून होने से भ्रमण का अभाव होता और उस ऋतु के मध्य श्रावणान्त में जठराग्नि के मन्द होने से स्वास्थ्य रक्षणार्थ तथा मन बहलाव के लिए कुछ भ्रमण, वा व्यायाम आवश्यक समझ—विशेषतः स्त्रियों के अर्थ जो प्रायः घरी में रहती—इस खेल का प्रचार तो भी विशेष उपयुक्त समझा गया होगा।

सदा से हम आर्यों के प्रायः सब कायों के आरम्भ में प्रथम धर्मकृत्य ही का अनुष्ठान होता है, उसमें भी प्रायः शक्ति लाभार्थ अनादि शक्ति ही अर्थात् महामाया अथवा उसके साकार भेद वा रूपान्तर की उपासना की जाती है। यदि सबी अवसरों के अर्थ एकही नाम, रूप वा रीति से पूजा की जाय, तो न तो उसके भक्ति भाव में विलक्षणता हो और न स्वाभाविक सरसता; अतः धर्मोपदेष्टा और सदाचार प्रवर्तकों के उपदेश और भक्तों की भक्ति भावनाओं के कारण समय समय पर प्रकारान्सर से उपासना की परिपाटी प्रचरित हुई। जैसे वासन्तिक उत्सव में श्री पंचमी, नववर्षारम्भ तथा सुहावनी शरद ऋतु के आदि में नवरात्र की शक्ति उपासना का प्रचार सर्वत्र समान रूप से है। बङ्गाल में तोप्रायः सभी अवसरों पर नाना प्रकार से देवी पूजा हुआ करती, योही भिन्न भिन्न देशों में अन्य अनेक प्रकार से इसमें समय और कृत्यों की विभिन्नता पाई जाती है, वैसे ही हमारे देश में भी यधपि अन्य अनेक महीनों और अवसरों पर विविध प्रकार की देवी पूजायें प्रचरित है, किन्तु हमें वर्षा ऋतु सम्बन्धी उत्सव मुख्यतः कजली के त्योहार से प्रयोजन है, अतः उसी के सम्बन्ध की कुछ बातें लिखते हैं,—

वर्षा के दो महीने अर्थात् श्रावण और भाद्रपद की तीनों तीजों में तीन त्योहार वा देवी पूजा का प्रकार पुराणों में पाया जाता है—यथा हरियाली वा ठकुरानी तीज, अर्थात् श्रावण शुक्ला तृतीया को मधु श्रावणिका नामक 'व्रत', पूजा वा उत्सव होता, जो विशेषतः गुजरात आदि देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। हमारे देश में उसी के समीप नागपञ्जमी का त्योहार विशेष रूप से प्रचलित होने से उसका यहां अधिक मान्य नहीं है। नागपञ्चमी ही के दिन यहां कजली की जयी जमाने के लिए स्त्रियां गाती बजाती तालों वा सरोवरों से मिट्टी भी लाने जाती हैं। मानों उसी दिन से कजली अथवा 'हरियाली' की स्थापना होती,—जैसे कि एक एरण्डवृक्ष को गाड़कर बसन्तपञ्चमी से होली की। इसी प्रकार भाद्र मास की दोनों तीज अर्थात् कजली और हरितालिका में भी दो व्रत अर्थात हरिकाली और हरितालिका का पृथक्