पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८९
भारतीय नागरी भाषा

होती रही। किन्तु विदेशियों के आने जाने और राज्याधिकार पाने से अब हमारी भाषा में विदेशी शब्दों का भी अधिक समावेश हो चला। मानो हमारी वर्त्तमान भाषा के जन्म के साथ ही इसका भी जन्म हो गया। क्योकि चन्द के पृथ्वीराज रासो में भी विदेशी शब्दों का प्रयोग देखा जाता है, जिस की संख्या भी न्यून नहीं है। निदान ज्यों ज्यों मुसलमानों का अधिकार यहाँ बढ़ता गया, हमारी भाषा में उनके शब्दों का भी अधिकार बढ़ता गया। चन्द बरदाई ने अपने महाकाव्य की भाषा के सम्बन्ध में लिखा है,

उक्ति धर्म विशालस्य राजनीति नवं रसं।
षट्र भाषा पुराणं च कुरानं कथितं मया॥

कुरान शब्द अनुप्रास के गुण के कारण कवि ने प्रयोग किया है। जिसका तात्पर्य अरबी फ़ारसी आदि मुसल्मानी शब्दों से है। सारांश पीछे से भाषा के लक्षण और गणना में पारसी भी रक्खी गई। जैसे,—

संस्कृतं प्राकृतं चैव सूरसेनं च मागधम्।
पारसीकमपभ्रंशम् भाषाया लक्षणानि पट्र॥
काव्य निर्णय में भिखारी दास ने लिखा है,—
व्रज भाखा माखा रुचिर कहैं सुमति सब कोय।
मिलै संस्कृत पारस्यो पै अति सुगम जु होय॥
योही अन्य ने भी—
अन्तरवेदी नागरी गौड़ी, पारस देस।
अरु अरबी जामैं मिलै मिश्रित भाषा बेस॥

निदान पारसी भाषा भी क्रमशः अपनी सहचरियों के सहित मानो उपभाषा रूप से अब स्वीकृत हुई और हमारी भाषा की मौसेरी बहिन वह पैशाची पुत्री पुनः आकर अपने जन्मस्थान हिन्दोस्तान में बस गई, जिसका बहिष्कार अब एक प्रकार से दुश्वार हैं। भागे लोग साहित्य में केवल पद्य लिखते थे। गद्य केवल सामान्य व्यवहार में आता था। कविता वा छन्दों में अधिकतर विदेशी शब्दों का समावेश भी असम्भव है, क्योंकि कवि जब अपनी भाषा में किसी शब्द का प्रभाव पाता, वा न्य भाषा का शब्द उसे किसी स्थान पर विशेष उपयुक्त वा अर्थप्रद लखाता, तबी वह उसका प्रयोग करता है; और प्रयोग करके भी उसे अपना सा