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भारतीय नागरी भाषा

 

लह्यो न्याय सबही छीने निज स्वत्वहिं पाई।
दुरभागनि बचि रही यही अन्याय सताई॥
लह्यो देस भाषा अधिकार सबै निज देसन।
राज काज अालय विद्यालय बीच तत्च्छन॥
पै इत विरचि नाम उर्दू को "हिन्दुस्तानी।"
अरबी बरन लिखित सके नहिं बुध पहिचानी॥
"हिन्दुस्तानी" भाषा कौन? कहाँ से आई।
को भाषत, किहि ठौर कोऊ किन देहु बलाई॥
कोउ साहिब स्त्र पुष्प सम नाम धरो मनमानो!
होत बड़न सौ भूलहु बड़ी सहज यह जानो॥
हरि हिन्दी की बोली अरु अच्छर अधिकारहिं।
लै पैठारे बीच कचहरी बिना बिचारहिं॥
जाको फल अतिसब अनिष्ट लखि सब अकुलाने।
राज कर्मचारी अरु प्रज्ञा वृन्द विलखाने॥
संसोधन हित बारहिं बार कियो बहु उद्यम।
होय असम्भव किमि सम्भव, कैसे खल उत्तम॥
हिन्दी भाषा सरल चरो लिखि अरबी बरनन।
सो कैसे है सकै बिचारहु नेक, बिचच्छन॥
मुगलानी, ईरानी, अरबी, इङ्गलिस्तानी।
तिय नहिं हिन्दुस्तानी बानी सकत बखानी॥
ज्यों लोहार गढ़ि सकत न सोने के आभूषन।
अरु कुम्हार नहिं बन सकत चांदी के बरतन॥
कलम कुल्हाड़ी सों न बनाय सकत कोउ जैले।
सूजा सों मलमल पर बखिया होत न तैसे॥
कैसे हिन्दी के कोऊ सुद्ध शब्द लिखि लै है।
अरबी अच्छर बीच, लिखेहुँ पुनि किमि पढ़ि पैहै॥
निज भाषा को सबद लिखो पढ़ि जात न जामैं।
पर भाषा को कहाँ परै कैसे कोउ तामैं॥
लिख्यो हकीम औषधी मैं 'बालू बोखारा।
उल्लू बनो मोलवी पढ़ि 'उल्लू बेचारा॥
साहिब 'किस्ती' चही, पठाई मुनसी 'कसबी।'