रात को जुगुनुओं की ज्योति मानो अँधेरी रात देख भगवान ने तारागणों को आकाश से भूमि पर भेज कर प्रकाश दिया, अथवा आगामी दीपावली (दिवारी) की सूचना दिया है।
पावस प्रस्थान
निदान जब कलित कालेबलाहकों की ऋतार से अन्धकारमय संसार की अपार बहार बिहार के अनुसार अनुभव भई, भूपति भाद्रपद ने अपनी प्राण प्यारी निसा सुंकुमारी को आलिगन करना प्रारम्भ किया, कि अनादर के ग्लानि से अभिमान रहित सोक सहित लज्जित उज्वल दुति वाली तारावली तरुगियों ने अपने अनुपम और अमन्द आनन को अदृश्य किया। तो मोह माया में लिन मन अपमान का औसर अनुमान मानकर मयङ्क-मरीचिकाओं ने भी , छिपाकर छपाकर के आकर में जाकर अपने उसे भी न जाने कहाँ छिपाया। अब ऐसे अनुकूल अवसर में खद्योतों को भी जब अपनी चमक दमक दिखाने का अवसर मिला, तो प्रायः सभी छुद्र युति धारी उष्मज जन्तुओं को घमण्डके घन्टेका बजाना सुलम हुआ, और सभी निज निज शक्त्यायानुसार लगे जुग जुगाने उसी काल में मानी साक्षात् काल से विशाल व्याल कराल रूप धारण किए संग में अशेष शेषावतन्सों का सैन समूह लिए आये और अपनी अपनी मणि धर धर के लगे इधर उधर घूमने कि अभागे कीड़े फतङ्गे पाँखी और फनगे इत्यादि दीपक के धोखे से लगे चाय भाव से प्रावने कि जिन्हें रखवाली के सुभट लोग भोग लगाने लगे, उधर भ्रमण करते भुजङ्ग भोजन के खोज में बिलों में घुस घुस मूस घूस को ढूंस लूंस चाभते, कोई पकड़ कर दादुर ही को दरदराये डारते। कहीं अजगरों का दूर ही से पशुओं को खींच २ कर निगल जाना, कहीं काली नागिनी का उस ओस पासव पान से उन्मत्त हो बलखा खा कर तलमलाना, कहीं काले नाग फन फैलाए फंकारते, कहीं विषभरे कराइत अहङ्कार से हुङ्कारते, कहीं अपने तीक्ष्ण तालू के दातों के गर्व से गर्वित गोहुँअन गुरगुराते, कहीं घोड़ कराइत घोड़े की भाँति हिनहिनाते, कहीं डोडहे याते, कहीं असड़िहे जाते कहीं धामिन धाती, वो कहीं चीतरें चिडारती, कहीं बिच्छु' और खनकजूरे डोलते, तो वहीं गोह और विपखोपड़े बोलते। निदान इसरीति जब अत्यन्त घोर और भयंकर समय व्यतीत होने लगा, दोनों जीव व्याकुल हो बिलख बिलख कर लगे कोलाहल करने ज्योंही देखा कि मेत्र अत्यन्त जोर से सोर कर रहे हैं, झींगुर झिल्ली और रीवें भी रीवा रीव कर अपना सुर मिलाने लगे जिसके बीचो बीच