पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४६६

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श्लोक ही क्यों नहीं लिख दिया गया। अकबर कमला कर गट्टे की एवज "रत्न विन्दु बरसै नृपति" दोहा बना, प्रथम अंक में रक्खा गया। [पृष्ठ ४४] संयोगिता इनका मुख चन्द्र निहार मेरा मन समुद्र के तरह उसंगने लगा (क्या पुत्र स्नेह दरसाया है? रोमियोजिउलियट के आनन्द की कोशिश छोड़िए)। इसके आगे संयोगिता की वार्ता ऐसी भ्रष्ट रीति से लिखी गई जो लिखी नहीं जा सकती "प्रीति सीखिये ईखसोयह पुराना दोहा प्रथम तो बहुत बेमौका है फिर क्या साक उड़ा लिया गया है। जब भारतवर्ष के कवियों से तृप्ति न हुई तो आप इंगलैंण्ड भी जा पहुंचे और हिन्दुस्तानी विवाह की रीति से न सन्तुष्ट हो, समयानुसार अंग्रेज़ी छल्लाबदलौअल के लिये शेक्सपीयर पर हथलपकौअल कर भरचेन्ट अफ वेनिस के भी मरचेन्ट बन गये। [पष्ठ ४७] जैसे "मैं अब जिस लायक हूँ उसमें हज़ार गुनी होती तो भी आप के लायक न होती "

यथा—

You see me, lord Bassanio, where I stand
Such as I am.................
....................yet for you
I would be trebled twenty times myself
A thousand times more fair ten thousand ::times More rich...................
To stand high in your account

——Merchant of Venice (Act III Sc. 2)

[पृष्ठ ४७] संयोगिता—आज तक मैं इस देह की मालिक थी पर अब इन सब के स्वामी आप हैं.....

........ ......... But now
This house, these servants, of this same myself
Are yours, my lord................

——Merchant of Venice (Act III Sc. 2)

गर्जे कि इस सफ़हे की कुल स्पीचैं मरचेन्ट आफ वेनिस से ली गई पहले तो मैं यह पूछता हूं कि विवाह में मुद्रिक परिवर्तन की रीति इस देस की नहीं बल्कि यूरोप (Europe) की मैंने माना कि आप शकुन्तला को दुष्यन्त के मुद्रिका देने का प्रमाण देंगे पर वो तो परिवर्तन न था किन्तु