पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४९५

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पत्रिका की प्रार्थना

हरिश्चन्द्र प्रेषित, इनके सिवा हिन्दी के प्रायः सभी उत्तम लेखकों के लेख कार्यालय में आये, जैसे भारतेन्दु श्री बाबू हरिश्चन्द्र, लाल खड़ग बहादर मल्ल राजकुमार मझौली, बाब काशीनाथ सिरसा, बाब राधाकृष्ण दास, व्यास श्री राम शंकर शर्मा, विनायक शास्त्री इत्यादि। यद्यपि उनमें बहुतेरे अनूठे और सुहावने लेख हैं, कि जो केवल स्थानाभाव से न प्रकाश हो सके जिसकी क्षमा चाहते हुऐ हम फिर से यथा अवसर मुद्रित करने की इच्छा रखते हैं एवम् स्वयम् सम्पादक लिखित लेख इतने अधिक थे कि ऐसे कई पत्र वर्षों छपा करे तो भी अन्य किसी लेखक के लेख की अपेक्षा न हो। नूतन और मनोहर ग्रंथों से भरी आलमारी सदा इसी प्रतीक्षा में रही कि कब कादम्बिनी मुझ पर कृपा दृष्टि फेरेगी? पर प्रथम ही से ऐसे नवीन विषय प्रवेशित हो गये जो यद्यपि आवश्यक थे, पर तब भी पूर्वोक्त विषय के बाधक हुये।

किंतु इस विलम्ब वाटिका ने तो इतने ही अवसर में वह २ विचित्र फूल खिलाये कि इधर तो आशा दुराशा ही में पड़े रहे, और उधर यारों ने नाम और नमूने को ले आकाश पहुँचे, कोई महाशय आशय देख ग्रंथ लिख मारा कोई जवानी बीज की तजबीज सुन बीजही निगल गये, कोई कोई ग्रंथ का नाम ही सुन अपना काम तमाम कर डाले, अतएव अब से यह विचार है कि जहाँ तक हो सके प्रायः नवीन और विचित्र ग्रंथों ही से पत्रिका भूषित की जाय, अर्थात् पत्र विषय बहुत ही कम रहे, क्योंकि वास्तव में यह पत्र तो केवल विद्या विषयक है, कि समाचार पत्र न हम यहाँ उन नवीन ग्रंथों का नाम कि जो कादम्बिनी के यथार्थ विभूषित करने में समर्थ और प्रस्तुत हैं गिना कर दो एक पृष्ठ और नहीं रंगा चाहते, यद्यपि स्थान संकोच से चित संकुचित है पर तब भी आगामिनी माला से किसी उत्तम ग्रंथ का सन्निवेपित करेंगे, यदि हो सका तो कोई अव्य काव्य भी दिया जायगा कि जिससे रसिकों की तृप्ति की पूरी आशा हो सके। हम अपने रसिकों को इसका भी स्मरण दिलाना अनुचित नहीं समझते कि जो कादम्बिनी ने प्रथम संख्या में "पत्र परिचय द्वारा अपने अभिमान वाक्य कहे थे मुख्य जिसमें बीबी उर्दू की नाक काटने की प्रतिज्ञा थी, सो शिक्षा कमीशन के द्वारा यद्यपि उसकी जान तो नहीं गई पर नाक तो अवश्य कट गई क्योंकि शरीर में जितना अंश नाक का है उतना प्रचार उसका अवश्य कम हुआ। यद्यपि वह कटी नाक भी झूलती है, पर यह केवल कादम्बिनी की दया और आलस्य