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प्रेमघन सर्वस्व

भी अधिकता से कार्यालय में आये किन्तु स्थान संकोच से वे अद्यावधिपर्यन्त पड़े ही रह गये जिस कारण परम पश्चाताप के सहित सम्पादक की उनसे क्षमा प्रार्थना है।

प्रिय पाठक! यद्यपि हम लोगों को इसके स्वल्पाकार और बृहत् भाण्डार पर सदैव चिन्ता वर्तमान रही, विशेषत: जब एक साधारण विशाल प्रबन्ध के लिये भी कई बिन्दुओं में शेषमग्रे लिखने की आवश्यकता पड़ती, योंही हमारे गुप्तरगोष्ठी के कई मित्र तो यही कह रहे हैं कि जब तक तुम इसके आकार को न बढ़ानोगे हम अपने लेख न देंगे।" तो भी अभी तक जो कि वे सब कारण ज्यों के त्यों हैं, जिनके विचार से प्रारम्भ ही में नीरद का आकार लधु रक्खा गया, अतः अभी इसके आकार की वृद्धि करने का विचार पुनः पूर्ववत् आगामि वर्ष पर उन्हीं नियमों पर निर्भर है, जिनमें कुछ की चर्चा तो हम आगे करेंगे, और कुछ को अन्य अवसर के लिये छिपा रखेंगे।

हम लोगों की इच्छा वह थी, कि प्रिय नीरद चाहे, आकार में लघु हो, परन्तु केवल सब प्रकार से गुणों से गुरु हो, प्रत्युत प्रस्ताव में यह पत्र गुरु हो, और यही छोटे पृष्ठ इस रीति पर सुसज्जित हों जैसे किसी सुमुखी सुहावनी का सुन्दर मुखारविन्द कि नमरों की भाँति पाठकों की दृष्टि जहीं पड़े, और बस वहीं चिपक जाय। और जिसकी पंक्ति, शब्द वर्ण तथा मात्रायें प्रेम पुत्तलिका प्राणवल्लभावों के प्रत्येक प्रत्येक अंग प्रत्यङ्ग भ्रवरुनी, कजलरेख, और तिल, तिलकादि, तुल्य मनोहर हों यद्यपि इस वर्ष वैसपूर्ण योग्य पूर्ण बनेगा परन्तु आगामि के लिये, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह इस मन संकल्प को सत्य कर नीरद की प्रतिष्ठा और कुमारी नागरी की शोभा बढाये। "हम सोचते हैं तो गत वर्ष के अनेक विन्दुओं के विशेष रोचक न होने का प्रधान कारण अधिकता से राजनैतिक विषयों का समावेश है, कि जो प्रायः स्वाभाविक नीरस है। यद्यपि हम लोग नहीं चाहते कि इसमें राजनैतिक विषय का विशेष समावेश हो, समाचार पत्र नाम के कारण समाचारों की भाँति इसे भी स्वीकार करने में विवश होना ही पड़ता है। यद्यपि यह सुविधा केवल मासिक पत्रों ही में सुलभ है तथापि यावत् सम्भव भविष्य में हम ऐसी ही चेष्टा करेंगे कि हमारे पाठक न केवल नीरद से समाचार पत्र, प्रत्युत मासिक पत्र और मनोहर पुस्तक के स्वाद की भी आशा रक्खें।