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नीदरलैंड का नवीन वर्षारम्भ

(हिन्दी पत्र पाठक वा उनके ग्राहक)

हमारी प्यारी नागरी भाषा वा हिन्दी के समाचार पत्रों की जैसी कुछ दुर्दशा है, वह किसी से छिपी नहीं है और सभी वस्तु की सजावट और बनावट उसके ग्राहकों की गुण ग्राहकता के आधार पर निर्भर है, और खेद है कि अभी हिन्दी के सच्चे रसिक प्रायः हुई नहीं है, और जो हैं वे अद्भुत। हमको इतने थोड़े अवसर में इन ग्राहकोंका जो कुछ परिचय मिला है, उससे विदेशी ग्राहकों का तो वृत्त केवल इतना ही है, कि पत्र प्रति सप्ताह लेना और कठिन से कठिन सूचना पढ़ कर भी दाम देने का नाम तक न लेना परिचित वा मित्र ग्राहकों ने तो मानों पत्र को मित्रता का सम्बन्ध वा उस सम्बन्ध के तोड़ने का इसे एक नया ढंग समझ कर प्रत्येक सप्ताह पत्र पचाते ही चले जाते डकार भी नहीं लेते, और एक विलक्षण बड़वानल बन गये हैं। स्थानिक ग्राहकों में विशेषतः जो धनी मानी है बहुतेरे उनमें से पत्र लेते ही नहीं। पत्र ले जाने वाला यदि कहे, कि भला आर लखपती धनी और सम्पादक जो के मित्रों में हैं, यदि आप ही पत्र न लेंगे तो कौन लेगा तो कहने लगते, कि "भाई जी ये क्या बात कहो हो? हमारी राजी होगी अकबाल लेवैंगे, नहीं खुशी चाहेगा न लेवैगे क्या अकबाल नहीं लेणे से दोश्ती में बट्टा लग जायगा?" देखिये क्या सच्चा उपदेश है। कोई कहते हैं कि "शुणो शाब! में अकोल लेऊँ हूँ तो, पण दाम ईरों एक रिपियों हूँ ज्यादा देऊँ कोयनी-कलकत्ते बन्दर से बङ्गबासी ईरो चौगुणी बड्डी छ, ऊँरो दोम दोई रिपियो छै, जिमाय शगले देशावर रो शमञ्चर, माल ताल री रघोतो खैछ, सो उसश मूजबईरो दोम यो आठान्नी सुनाशब छै।" इन्हें इतना बिचार नहीं कि बङ्गबासी दो रुपये के मोल पर कदाचित् नहीं चलता है। एक बड़े ही मान मर्यादा के अन्य महानुभाव पत्र देखते ही बसक कर कहने लगते हैं, कि—"सुन्यः हम एकर दाम वाम एक्कौ कौड़ी देव श्रोब न! जाइकै अपने अड़ीचर से कहि दिह्या नाहीं तो पीछे दामो मांगै लगें! हाँ! भल परचा कुक्कुर अस अठवें दिन दुबारे ठाढ़रथ्यः। न ओहमें कुछ सहर कै खबर रहै, न कौनो सोकदिमा मामिला कै बात, जन देखः तब काँगड़स, हो विलायत हो होस, हो फौस! काँगड़स गबेर है, और बिलाइति में लागइ आगिः, हमसे ओसे कौन मतलब ई नाहीं की सोमे सोमे सहर कै हाल लिखौ।" कोई कहते कि जनाब जाने क्या खाक पत्थर आप लिखा करते हैं। मेरे तो कुछ समझ में नहीं श्राता खुदा के लिए जरा इबारत सलोस और आम फहम हिन्दी लिखा कीजिए कहिए तो अब इन्हें क्या उत्तर दें।