पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१
ऋतु वर्णन

भोजन की कमी न देख मज़े में मस्त प्रमुदित धूमते; कुलस्थ वृक्षों पर जुरें, वाज, बहरी इत्यादि बीरविहंग भागते चले जाते भी पजे से दबूच चोच से चमड़ी नोचकर खरगोश का गोश्त खा भूख दूरकिये ग़रोव गौरैयों को गर्व से दूर रहे हैं; कि हारिल, कबूतर, तोता, तीतर, लवा आदि भी भय के अग्नि में भुन कर मानों लावा या कवाव बने जाते हैं; मुश रखौआ किस मज़े से छछूंदर और धूंस को चैन से चूस चूस खाकर तृप्त होता है, भुजैटा फनगों को खाता कठफोरवा आँखफोरबा को आँख मूंद निगल जाता, जब मुगराज खड़ो बिम्तुय्या लील गया, तो नीलकंट गिरगिट का कराठ कर गट से कंट के भीतर उतार झटपट भागा; दुष्ट कौवे अवमरे रोगी जीते हुए पशुओं के भी चोंच से खोद कर आँखे निकाल मलाई के लड्डू से उदर में उतार गये तो चील्ह चिड़ियों के अंडों को योला सा उड़ा गई; परन्तु साधु गृद्ध; गरुड़ बक्राब आदि पक्षी केवल मुरदे जीवों के मांस से अपनी उदर पूर्ति कर आनन्द में आँख मूंद ईश्वरध्यानावस्थित हैं।

बिशाल ताल और झील समूह इस काल कमाल उदारता पर सन्नद्व हुए मानों निज बपु बृक्ष के फल तुल्य तीनी, वेरा, सिंघाड़ा, सेरुकी, कसेरू, मृणाल इत्यादि से भरे पूरे मानों अब त्यागी व फलाहारी तथा व्रत रहने वाले भक्तों को आश्वासन दे रहे हैं। भगवती बसुन्धरा जैसे बृद्ध रोगी, और नवयुवक सयोगी जनों पर भानों दया कर नाना रोगों का नाश करने वाली तथा बल और वीर्य की वृद्धि करने वाली औषधियों को यथाशतावरी,मूशली, बाही, सहदेवी भृङ्गराज, मयूर शिखा, रत्नमाला, ईश भूल, पुनर्नवा, कपूरी, हुरहुर, हसराज आदि को उत्पन्न किया; तैसे ही वियोगी जनों पर भी कृपा कर उनके वियोग के रोग छुटने के अर्थ सिंगिया, कौमारी, कनैल, करियारी इत्यादि प्राग हारक विष (जहू कातिल) को प्रकाश किया कि उनके लाल मुकुल गुलेगुलहड़ की लालित्य को ल जाते अपने रङ्ग की शोखी से खून टपकाते मानो अापना खून करने (खुद कुशी) का तरीका बताते हुए कहते कि जो हमें खाते वे चटपट मर जाते हैं इससे अाश्रो और खानी तथा सांसारिक दुःख एवम् वियोग का सोग दूर बहावो।

निदान अब समस्त संसार के जीव मात्र सुखपूर्वक निज निज आहार बिहार से सुखी आनन्द निमग्न भये महाराज का गुनगान करते हैं; जो फल फूल खिलने में देर किये थे खिले, कुछ कसर किसी प्रकार की न रही। राह और मार्ग स्वच्छ हुए महाराज के चरण कमलों से पवित्र होने के अभि