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नवीन वर्षारम्भ

जब तक लोग इस घाटे को न सहेगे, कभी इस मृतप्राय देशी शिल्प का उद्धार न होगा। सारांश जैसे देशी शिल्प के पुनरुद्धारार्थ कुछ क्षति सहकर भी लोगों को उसके बचे खुचे वा नवसिखुये कारीगरों का उत्साह बढ़ाना परमावश्यक है, उसी प्रकार हमारी हीन दशा में पड़ी इस देश भाषा के निपुण कारीगरों की कारीगरी को भी जब तक लोग कुछ घाटा सहकर, विशेष मूल्य और पुरस्कार देकर सादर स्वीकार न करेगे, उसकी उन्ननि अनहोनी है। जब तक असामान्य साहित्य के असामान्य प्रेमी न होंगे उस की न्यूनता न मिटेगी। यही कारण है कि योग्य जन उससे उदासीनता दिखला रहे हैं। क्या वे अपने परिश्रम के फल प्राप्ति की आशा नहो रखते। सर्व सामान्य की सहायता पाने का भी समय अभी ठीक नही हुआ, क्योंकि प्रचरित साहित्य ही के प्रेमी अभी गिने चुने कुछ उत्पन्न हुए हैं। हमारी देश भाषा को जो कुछ आशय भी मिलता है, वह भी न उसके मुख्य जन्मस्थान से वरच अविकाश अन्य प्रातों से, जिसका प्रधान कारण उसके निज देश मे प्रचार की न्यूनता है। शोक से कहना पटता है कि देश में अब यद्यपि कई नागरी प्रचारिणी सभाओं की सृष्टि हो गई है, किन्तु कदाचित् वे अपने नाम के अर्थ को भी भूल सी गई हैं, क्योंकि दो एक मासिक पत्र निकाल वा पुस्तके छाप ही कर वे अपने कर्तव्य को पूरा समझती हैं। काशी की सभा मुख्य है, उसके कई ग्रन्थों का निर्माण और प्रकाशित करने का व्यापार भी निन्दनीय नहीं, हिन्दी ग्रन्थो की खोज और कोशो के निर्माण का प्रयत्न भी उसका उचित है, तौभी राम राम कह किसी प्रकार न्यायालयों मे नागरी के प्रवेश का जो परम असम्भव अधिकार प्राप्त हुआ है, उसके प्रचार प्रयत्न मे सर्वथा उदासीनता दिखाना उसका कितना बड़ा अपने मुख्य उद्देश्य से च्युत होना है। जिस प्रकार सभा आज नागरी प्रचार का नाम सार्थ करना चाहती है, वह तो समय के प्रभाव से स्वयम् हो रहा है, किन्तु मुख्य उद्देश्य उसका राज कार्यालयों में नागरी का प्रचार देना ही होना चाहिये। आशा है कि वह अपने अन्य कार्यों को छोड़कर भी इस के अर्थ विशेष यत्नवान होगी और सयोग से उस दुर्लभ राजाशा को नष्ट होने से बचायेगी कि जो बडे बखेड़ों स भाग्यत प्राप्त हुई है। इसी प्रकार अन्य नागरी प्रचारिणी सभाओं को भी उचित है कि वे काशी की सभा को प्रधान बना अपना एकमेव यही उद्देश्य रक्खे और अपनी भाषा का कुछ सच्चा उपकार करने में प्रवृत्त हों, न कि मिथ्या कीर्ति लाभार्थ एक नई संख्या