पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
प्रेमघन सर्वस्व

साधुनों की पर्णकुटियों में भक्त जनों की भीड़ लग रही है और उनके वचनों से जीवन सफलकारी अलभ्य लाभ प्रात कर रही है। धन्य यह पर्व है, नहीं तो कहाँ से इतने महात्मा एकत्रित हो सकते थे, जिनके दर्शन मात्र से आत्मा पवित्र हो जाती है। त्रिवेणी के पूर्व दोनों धारों से मिश्रित श्रीगङ्गा जी की छटा कुछ और हो रही है, जान पड़ता है कि आज श्रीगङ्गा जी की तीक्ष्ण धारा सदा बसन्त व्यापी नन्दन कानन को बाद में बड़ा लाई है, क्योंकि अनगिनत फूलों से आज नदी का पाट पट गया है।

माघ १९५० बै॰ आ॰ का॰