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प्रेमघन सर्वस्व

प्रस्ताव पर कोई दत्तावधान भी नहीं हुआ! फिर शोक तो यह कि न केवल सामान्य जनसमुदाय बरंच विशेषों ने भी इस पर कुछ ध्यान न दिया! और की बात जाने दीजिये, इस प्रदेश और इस भाषा के जो कोड़ियों समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं, यदि कुछ दिनों तक एक स्वर हो के पुकार मचाते, तो सचमुच ऐसे न्याय परायण अनुशासक के राज्य समय में जैसे कि हमारे वर्तमान प्रादेशिक प्रभु हैं, वह सर्वथा फल शून्य न होता, वरंच न केवल साम्राज्य, किन्तु प्रजा भी इसके अर्थ अवश्य' यत्नवान होती। परन्तु शोक तो यह है, कि चाहे अपने मूं कुछ मियाँ मिट्टू जो चाहे सो बन लें, पर वास्तव में अभी हमारी भाषा के पत्र सम्पादक लोग सम्पादकीय धर्म ही को नहीं जानते। हम देखते हैं कि प्रजा के यथार्थ उपयोगी प्रवन्ध प्रायः तो हमारे सहयोगी समूह लिखते ही नहीं, और यदि कभी किसी ने लिखा भी तो दूसरे उसकी हाँ में हाँ मिलाना तो कदापि सीखे ही नहीं; और उसकी पुष्टता में अनेक प्रबन्ध लिखना तो भानों अपनी अपकीर्ति जानते। अस्तु, अब हम अपने सुहृत्सहयोगी समूह से अत्यन्त नम्रता और विनीत भाव से प्रथम अपने किंचित कटु वाक्यों की जो केवल उत्तेजनार्थ कहे गये हैं, क्षमा माँग कर प्रार्थना करते है कि कृपा कर भगवान के निहोरे अब तो दत्तावधान हजिये और कुछ दिन इसी विषय का आन्दोलन कीजिये, क्यों कि इससे अधिक सामान्यतः सर्व सामान्य और विशेषतः आप लोगों के अर्थ लाभदायक अन्य कोई विषय नहीं हैं, और इस समय के पश्चात् निश्चय पुनः कोई अन्य समय भी न भायेगा।

क्योंकि हमारे वर्तमान प्रादेशिक प्रभु श्रीमान सर॰ ए॰ पी॰ मेकडालन महाशय के समान विशुद्ध न्यायकारी और प्रजाहितैषी अनशासक कदाचित् कोई इस प्रदेश में न आया था, वा आगामि में आये, तब हम लोगों को अपने चिर दिन की मनोभिलाषा उक्त श्रीमान की सेवा में यथा विधिन निवेदन करना कितनी बड़ी मुर्खता है? सुतराम हम लोगों को बिना बिलम्ब के अब न्याय प्राप्ति के लिये अवश्यमावश्य पुकार करनी चाहिये। यों तो भाग्य की बात अलग है, नहीं तो जब इस समय गवर्नमेंट उर्दू अक्षरों के दोषों को दूर करने पर स्वयं दत्तचित्त हुई है और वह अपने प्रादेशिक न्यायालयों में वर्तमान अक्षरों का परिवर्तन करना चाहती है,एबम् जब इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यहाँ के देश के अक्षर देवनागरी हा है, तो हम कदापि यह विश्वास नहीं कर सकते कि कोई