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गुप्त गोष्ठी गाथा

सर्वथा भूल गये! तुम क्या थे और क्या हो गये, अब भी चेतो तो भी कुशल है, उद्योग करो और ईश्वर सहायता करेंगे, इत्यादि इत्यादि सुनते चले जाइए, बोले कि बस बात बिगड़ी।

हमारे दूसरे मित्र क्या महामित्र जिनका नाम भी लेते भय लगता है श्रीमान् भयङ्कर भट्टाचार्य जी महाराज हैं।

श्रीमान् शब्द लिखने से यह मत जानिये कि आप कोई बड़े ही प्रतिष्ठित व्यक्ति है, किन्तु क्या करें यदि सदैव कहने व लिखने में इनके नाम के पहिले श्रीमान् शब्द का प्रयोग न किया जाय तो प्राय गालियाँ देने लगते हैं, अतः उन्हें श्रीमान् कहना ही पड़ता है। यों ही भट्टाचार्य पद से बंगदेशीय ब्राह्मण वा कोई बड़ा पण्डित अथवा आचार्य मत समझिये क्योंकि यह उपाधि भी अपने अपने ही मन से ले ली है, हम लोग तो यह भी नहीं जानते कि आप सचमुच ब्राह्मण हैं या नहीं! क्योंकि अनेक लोग उन्हे अनेक जाति कहकर पुकारते हैं और वे बोलते हैं, यों ही कई लोग उन्हें और ही अपवाद लगाते हैं चाहे सब हमी ही की रीति पर क्यों न हो। आपसे प्रायः हंसी ठठ्ठा सभी से हुआ करता है, जिस ओर से जाने मानों होली छा जाती है, परन्तु आप अपने को माधुर चौबे कहकर प्रसिद्ध करते हैं। इनका नाम भयङ्कर सुनकर आपलोग भयभीत न हो और न ये इतने भयङ्कर है; हाँ लड़ाई देखने और कभी कभी स्वयं लड़जाने का स्वभाव उनका अवश्य है इससे अगर आप स्वप्न में भी कोई बात किसी के विरुद्ध सुन लें तो तुरन्त जाकर आप उससे कह देंगे, एवम् यथाशक्ति बिना लड़ाई कराये न रहेंगे; क्योंकि आप अपने को नारदजी के वंश में उत्पन्न बतलाते हैं, फिर जब आप मिलेंगे तो ऐसा हंसेंगे कि आपको गद्गद् करके तब छोड़ेंगे, इससे हम क्या सभी लोग इनसे डरते वरञ्च कभी कभी कुछ देते भी हैं।

आपकी वृत्ति तो यजमानी है, परन्तु और भी अनेक तरह से आप द्रध्याचूषण करना जानते हैं, आप ने कुछ संस्कृत अवश्य पढ़ी है जिससे अपना पूजा पाठ और यजमानी का काम कर लेते हैं, परन्तु सचमुच अपने को षटशास्त्रवेत्ता मानते हैं, न केवल इतना ही, किन्तु कैसा भी पंडित हो परन्तु आपके आतेही उसकी सरस्वती मन्द और बुद्धि कुण्ठित हो जाती है। क्यों कि प्रथम तो आप के प्रश्नोत्तर ही ऐसे विचित्र होते कि सुनने के अतिरिक्त बोलने की आवश्यकता ही नहीं रहती, और यदि कोई बोल दे तो बिना एकाध कापड़ मार मानते भी नहीं अपनी बात को यदि कोई वचन से न माने तो