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164 : प्रेमचंद रचनावली-5
 

रतन-कई धर्मशाले हैं। नहीं होटल में ठहर जाना। देखो रुपये की जरूरत पड़े, तो मुझे तार देना। कोई-न-कोई इंतजाम करके भेजूंगी। बाबूजी आ जाएं,तो मेरा बड़ा उपकार हो। यह मणिभूषण मुझे तबाह कर देगा।

जालपा–होटल वाले बदमाश तो ने होंगे?

रतन-कोई जरा भी शरारत करे, तो ठोकर मारना। बस, कुछ पूछना मत। ठोकर जमाकर तब बात करनी। (कमर से एक छुरी निकालकर) इसे अपने पास रख लो। कमर में छिपाए रखना। मैं जब कभी बाहर निकलती हैं, तो इसे अपने पास रख लेती हैं। इससे दिल बड़ा मजबूत रहता है। जो मर्द किसी स्त्री को छेड़ता है, उसे समझ लो कि पल्ले सिरे को कायर,नीच और लंपट है। तुम्हारी छुरी की चमक और तुम्हारे तेवर देखकर ही उसकी रूह फना हो जायगी। सीधा दुम दबाकर भागेगा, लेकिन अगर ऐसा मौका आ ही पड़े जब तुम्हें छुरी से काम लेने के लिए मजबूर हो जाना पड़े, तो जरा भी मत झिझकना। छुरी लेकर पिल पड़ा। इसकी बिल्कुल फिक्र मत करना कि क्या होगा, क्या न होगा। जो कुछ होगा, हो जायगी।

जालपा ने छुरी ले ली, पर कुछ बोली नहीं। उसका दिल भारी हो रहा था। इतनी बातें सोचने और पूछने की थीं उनके विचार से ही उसका दिल बैठा जाता था।

स्टेशन आ गया। कुलियों ने असबाब उतारा। गोपी टिकट लाया। जालपा पत्थर की मूर्ति की भांति प्लेटफार्म पर खड़ी रही, मानो चेतना शून्य हो गई हो। किसी बड़ी परीक्षा के पहले हम मौन हो जाते हैं। हमारी सारी शक्तियां उस संग्राम की तैयारी में लग जाती हैं।

रतन ने गोपी से कहा-होशियार रहना।

गोपी इधर कई महीनों से कसरत करता था। चलता तो मुड्ढे और छाती को देखा करता। देखने वालों को तो वह ज्यों का त्यों मालूम होता है, पर अपनी नजर में वह कुछ और हो गया था। शायद उसे आश्चर्य होता था कि उसे आते देखकर क्यों लोग रास्ते से नहीं हट जाते, क्यों उसके डील-डौल से भयभीत नहीं हो जाते। अकड़कर बोला-किसी ने जरा चीं-चपड़ की तो हड्डी तोड़ दूंगा।।

रतन मुस्कराई-यह तो मुझे मालूम है। सो मत जाना।

गोपी-पलक तक तो झपकेगी नहीं। मजाल है नींद आ जाय।

गाड़ी आ गई। गोपी ने एक डिब्बे में घुसकर कब्जा जमाया। जालपा की आंख में आंसू भरे हुए थे। बोली-बहन,आशीर्वाद दो कि उन्हें लेकर कुशल से लौट आऊं।।

इस समय उसका दुर्बल घने कोई आश्रय, कोई सहारा, कोई बल ढूंढ रहा था और आशीर्वाद और प्रार्थना के सिवा यह बल उसे कौन प्रदान करता। यही बल और शांति का वह अक्षय भंडार है जो किसी को निराश नहीं करता, जो सबकी बांह पकड़ता है, सबका बेड़ा पार लगाता है।

इंजन ने सीटी दी। दोनों सहेलियां गले मिलीं। जालपा गाड़ी में जा बैठी।

रतन ने कहा-जाते ही जाते खत भेजना।

जालपा ने सिर हिलाया।

'अगर मेरी जरूरत मालूम हो,तो तुरंत लिखना। मैं सब कुछ छोड़कर चली आऊंगी।'