पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/१६९

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गबन : 169
 


हममें है इतनी हिम्मत ! यहां तो कोई मेहमान आ जाता है, तो वह भी भारी हो जाता है। अगर यह नीचे हैं, तो हम इनसे कहीं नीचे हैं।

गोपी मुंह-हाथ धो चुका था। मिठाई खाता हुआ बोला-किसी को ठहरा लेने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता। चमार कितना ही दान-पुण्य करे, पर रहेगा तो चमार ही।

जालपा–मैं उस चमार को उस पंडित से अच्छा समझूंगी, जो हमेशा दूसरों का धन खाया करता है।

जलपान करके गोपी नीचे चला गया। शहर घूमने की उसकी बड़ी इच्छा थी। जालपा की इच्छा कुछ खाने की न हुई। उसके सामने एक जटिल समस्या खड़ी थी-रमा को कैसे इस दलदल से निकाले। उस निंदा और उपहास की कल्पना ही से उसका अभिमान आहत हो उठता था। हमेशा के लिए वह सबकी आंखों से गिर जाएंगे, किसी को मुंह न दिखा सकेंगे।

फिर बेगनाहों का खून किसकी गर्दन पर होगा। अभियक्तों में न जाने कौन अपराधी है,कौन निरपराध है, कितने द्वेष के शिकार हैं, कितने लोभ के सभी सजा पा जाएंगे। शायद दो-चार को फांसी भी हो जाये। किस पर यह हत्या पड़ेगी?

उसने फिर सोचा, माना किसी पर हत्या न पड़ेगी। कौन जानता है, हत्या पडती है या नहीं; लेकिन अपने स्वार्थ के लिए-ओह । कितनी बड़ी नीचता है। यह कैसे इस बात पर राजी हुए। अगर म्युनिसिपैलिटी के मुकदमा चलाने का भय भी था, तो दो-चार साल की कैद के सिवा और क्या होता? उससे बचने के लिए इतनी घोर नीचता पर उतर आए ।

अब अगर मालूम भी हो जाए कि म्युनिसिपैलिटी कुछ नहीं कर सकती, तो अब हो ही क्या सकता है। इनकी शहादत तो हो ही गई।

सहसा एक बात किसी भारी कोल की तरह उसके हृदय में चुभ गई। क्यों न यह अपना बयान बदल दें। उन्हें मालूम हो जाए कि म्युनिसिपैलिटी उनका कुछ नहीं कर सकती, तो शायद वह खुद ही अपना बयान बदल दें। यह बात उन्हें कैसे बताई जाए? किसी तरह संभव है।

वह अधीर होकर नीचे उतर आई और देवीदीन को इशारे से बुलाकर बोली—क्यों दादी,उनके पास कोई खत भी नहीं पहुंच सकता? पहरे वालों को दस-पांच रुपये देने से तो शायद खत पहुंच जाय।

देवीदीन ने गर्दन हिलाकर कहा-मुसकिल है। पहरे पर बड़े जंचे हुए आदमी रखे गए हैं।मैं दो बार गया था। सबों ने फाटक के सामने खड़ा भी न होने दिया।

'उस बंगले के आसपास क्या है?'

'एक ओर तो दूसरा बंगला है। एक ओर एक कलमी आम का बाग है और सामने सड़क है।

'हां, शाम को घूमने-घामने तो निकलते ही होंगे?'

'हां, बाहर कुरसी डालकर बैठते हैं। पुलिस के दो-एक अफसर भी साथ रहते हैं।'

'अगर कोई उस बाग में छिपकर बैठे, तो कैसा हो ! जब उन्हें अकेले देखे, खत फेंक दे। वह जरूर उठा लेंगे।'

देवीदीन ने चकित होकर कहा-हां, हो तो सकता है, लेकिन अकेले मिलें तब तो !