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कर्मभूमि:411
 

सखदा ने जगन्नाथ की ओर आशा-भरी आंखों से देखकर कहा-तुम क्या कहते हो जगन्नाथ, इन लोगों ने तो जवाब दे दिया?

जुगन्नाथ ने बगलें झांकते हुए कहा--तो बहूजी, अकेला चना तो भाड़ नहीं फोड़ सकता। अगर सब भाई साथ दें तो मैं तैयार हूं। हमारी बिरादरी का आधार नौकरी है। कुछ लोग खोंचे लगाते हैं, कोई डोली ढोता है, पर बहुत करके लोग बड़े आदमियों की सेवा-टहल करते हैं। टो-चार दिन बड़े घरों की औरतें भी घर का काम-काज कर लेंगी। हम लोगों का तो सत्यानाश ही हो जाएगा।

सुखदा ने उसकी ओर से मुंह फेर लिया और मतई से बोली-तुम क्या कहते हो, क्या तुमने भी हिम्मत छोड़ दी?

मतई ने छाती ठोकर कहा--बात कहकर निकल जाना पाजियों का काम है, सरकार । आपका जो हुक्म होगा, उससे बाहर नहीं जा सकता। चाहे जान रहे या जाए। बिरादरी पर भगवान् की दया से इतनी धाक है कि जो बात मैं कहूंगा, उसे कोई दुलक नहीं सकता।

सुखदा ने निश्चय-भाव से कहा-अच्छी बात है, कल से तुम अपनी बिरादरी की हड़ताल करवा दो। और चौधरी लोग जाएं। मैं खुद घर-घर घूमूगी, द्वार द्वार जाऊंगी, एक- एक के पैर पडूंगी और हड़ताल कराके छोडूगी, और हड़ताल न हुई, तो मुंह में कालिख लगाकर डूब जाऊँगी। मुझे तुम लोगों से बड़ी आशा थी, तुम्हारा बड़ा जोर था, अभिमान था। तुमने मेरा अभिमान तोड़ दिया।

यह कहनी हुई वह ठाकुरद्वारे से निकलकर पानी में भीगती हुई चली गई। मतई भी उसके पीछे-पीछे चला गया। और चौधरी लोग अपनी अपराधी सूरतें लिए बैठे रहे।

एक क्षण के बाद जगन्नाथ बोला-बहूजी ने शेर कलेजा पाया है।

सुमेर ने पोपला मुंह चबलाकर कहा-लक्ष्मी की औतार है। लेकिन भाई, रोजगार तो नहीं छोड़ा जाता। हाकिमों की कौन चलाए, दस दिन, पंद्रह दिन न सुनें तो यहां तो मर मिटेंगे।

ईदू को दूर की सूझी-मर नहीं मिटेंगे पंचो, चौधरियों को जेहल में ठूस दिया जाएगा। हो किस फेर में? हाकिमों से लड़ना ठट्ठा नहीं।

जंगली ने हामी भरी–हम क्या खाकर रईसों से लड़ेंगे? बहूजी के पास धन है, इलम है, वह अफसरों से दो-दो बातें कर सकती हैं। हर तरह का नुकसान पह सकती हैं। हमार तो बधिया बैठ जाएगी।

किंतु सभी मन में लज्जित थे, जैसे मैदान से भागा सिपाही। उसे अपने प्राणों के बचाने का जितना आनंद होता है, उससे कहीं ज्यादा भागने की लज्जा होती है। वह अपनी नीति का समर्थन मुंह से चाहे कर ले, हृदय से नहीं कर सकता।

जरा देर में पानी रुक गया और यह लोग भी यहां से चले, लेकिन उनके उदास चेहरों में, उनकी मंद चाल में, उनके झुके हुए सिरों में, उनके चिंतामय मौन में, उनके एन के भाव साफ झलक रहे थे।