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कर्मभूमि:437
 


महन्तजी के मुखमंडल पर दया झलक रही थी। हुक्के का एक कश खींचकर मधुर स्वर में बोले—तुम इलाके ही में रहते हो न? मुझे यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ कि मेरे असामियों की इस समय कष्ट है। क्या सचमुच उनकी दशा यही है, जो तुमने अर्जी में लिखी है?

अमर ने प्रोत्साहित होकर कहा—महाराज, उनकी दशा इससे कहीं खराब है; कितने ही घरों में चूल्हा नहीं जलता।

महन्तजी ने आंखें बंद करके कहा—भगवान्। यह तुम्हारी क्या लीला है—तो तुमने मुझे पहले ही क्यों न खबरे दी? मैं इस फसल की वसूली रोक देता। भगवान् के भंडार में किस चीज की कमी है। मैं इस विषय में बहुत जल्द सरकार से पत्र व्यवहार करूंगा और वहां से जो कुछ जवाब आएगा, वह असामियों को भिजवा दूंगा। तुम उनसे कहो, धैर्य रखें। भगवान्, यह तुम्हारी क्या लीला है।

महन्तजी ने आंखों पर ऐनक लगी ली और दूसरी अर्जियां देखने लगे, तो अमरकान्त भी उठ खड़ा हुआ। चलते-चलते उसने पूछा—अगर श्रीमान् कारिंदों को हुक्म दे दें कि इस वक्त असामियों को दिक न करें, तो बड़ी दया हो। किसी के पास कुछ नहीं है, पर मार—गाली के भय से बेचारे घर की चीजें बेच-बेचकर लगान चुकाते हैं। कितने ही तो इलाका छोड़—छोड़कर भागे जा रहे हैं।

महन्तजी की मुद्रा कठोर हो गई — ऐसा नहीं होने पाएगा। मैंने कारिंदों को कड़ी ताकीद कर दी है कि किसी असामी पर सख्ती न की जाय। मैं उन सवों से जवाब तलब करूंगा। मैं असामियों का सताया जाना बिल्कुल पसंद नहीं करता।

अमर ने झुककर महन्तजी को दंडवत किया और वहां से बाहर निकला, तो उसकी बांछें खिली जाती थी। वह जल्ट-से जल्द इलाके में पहुंचकर यह खबर सुना देना चाहता था। ऐसा तेज जा रहा था, मानी दौड़ रहा है। बीच-बीच में दौड़ भी लगा लेती थी, पर सचेत होकर रुक जाता था। लू तो न थी, पर धूप बड़ी तेज थी, देह फुँक की जाती थी, फिर भी वह भागा चला जाता था। अब वह स्वामी आत्मानन्द से पूछेगा कहिए अब तो आपको विश्वास आया न कि संसार में सभी स्वार्थों नहीं? कुछ धर्मात्मा भी हैं, जो दूसरों का , दुख-दर्द समझते हैं? अब उनके साथ के बेफिक्रों की खबर भी लूंगा। अगर उसके पर होते तो उड़ जाता।

संध्या समय वह गांव में पहुंचा तो कितने ही उत्सुक किंतु अविश्वास से भरे नेत्रों ने उसका स्वागत किया।

काशी बोला — आज तो बड़े प्रसन्न हो भैया, पाला मार आए क्या?

अमर ने खाट पर बैठते हुए अकड़कर कहा—जो दिल से काम करेगा, वह पाला मारेगा ही।

बहुत से लोग पूछने लगे—भैया, क्या हुकुम हुआ?

अमर ने डॉक्टर की तरह मरीजों को तसल्ली दी—महन्तजी को तुम लोग व्यर्थ बदनाम कर रहे थे। ऐसी सज्जनता से मिले कि मैं क्या कहूं? कहा—हमें तो कुछ मालूम ही नहीं, पहले ही क्यों ने सूचना दी, नहीं तो हमने वसूली बंद कर दी होती। अब उन्होंने सरकार को लिखा है। यहां कारिंदों को भी वसूली की मनाही हो जाएगी।

काशी ने खिसियाकर कहा—देखो, कुछ हो जाय तो जानें।

अमर ने गर्व से कहा—अगर धैर्य से काम लोगे, तो सब कुछ हो जाएगा। हुल्लड़