पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४४७

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कर्मभूमि : 447 "ऐसा काम ही क्यों किया जाय, जिसका अंत लज्जा और अपमान हो? मैं तुमसे सत्य कहता हूं, मुझे बड़ी निराशा हुई।" "इसका अर्थ यह है कि आप इस आंदोलन के नायक बनने के योग्य नहीं हैं। नेता में आत्मविश्वास, साहस और धैर्य, ये मुख्य लक्षण हैं।" मुन्नी शर्बत बनाकर लाई। आत्मानन्द ने कमंडलु भर लिया और एक सांस में चढ़ा गए। अमरकान्त एक कटोरे से ज्यादा न पी सके। आत्मानन्द ने मुंह छिपाकर कहा-बस । फिर भी आप अपने को मनुष्य कहते हैं? अमर ने जवाब दिया-बहुत ख़ाना पशुओं का काम है। "जो खा नहीं सकता वह काम क्या करेगा?" "नहीं, जो कम खाता है, वही काम कर सकता है। पेटू के लिए सबसे बड़ा काम भोजन पचाना है।" सलोनी कल से बीमार थी। अमर उसे देखने चला था कि मदरसे के सामने ही मोटर आते देखकर रुक गया। शायद इस गांव में मोटर पहली बार आई हो। वह सोच रहा था, किसकी मोटर है कि सलीम उसमें से उतर पड़ा। अमर ने लपककर हाथ मिलाया-कोई जरूरी काम था, मुझे क्यों न बुला लिया? दोनों आदमी मदरसे में आए। अमर में एक वाट लाकर डाल दी और बोला-तुम्हारी क्या खातिर करू? यहां तो फकीरों की हालत है। शर्बत बनवाऊँ? सलीम ने सिगार जलाते हुए कहा-नहीं, कोई तकल्लुफ नहीं। मि० गजनवी तुमसे किसी मुआमले में सलाह करना चाहते हैं। मैं आज ही जा रहा है। सोचा, तुम्हें भी लेता चलूं। तुमने तो कल आग लगा ही दी। अब तहकीकात में क्या फायदा होगा? वह तो बेकार हो गई। अमर ने कुछ झिझकते हुए कहा--महनजी ने मजबूर कर दिया। क्या करता? सलीम ने दोस्ती की आड़ ली–मगर इतना तो सोचते कि यह मेरा इलाका है और यहां की सारी जिम्मेदारी मुझ पर है। मैंने सड़क के किनारे अक्मर गांवों में लोगों के जमाव देखे। कहीं-कहीं तो मेरी मोटर पर पत्थर भी फेंके गए। यह अच्छे आसार हैं। मुझे खौफ है, कोई हंगामा न हो जाय। अपने हक के लिए या बेजा जुल्म के खिलाफ आया में जोश हो, तो मैं इसे बुरा नहीं समझता, लेकिन यह लोग कायदे -कानून के अंदर रहेंगे, मुझे इसमें शक है। तुमने गूगों को आवाज दी, सोतों को जगाया, लेकिन ऐसी तहरीक के लिए जितने जब्त और सब्र की जरूरत है, उसका दसवां भी हिस्सा मुझे नजर नहीं आता।। अमर को इस कथन में शासन- पक्ष की गंध आई। बोला-तुम्हें यकीन है कि तुम भी वह गलती नहीं कर रहे, जो हुक्काम किया करते हैं? जिनकी जिंदगी आराम और फरागत से गुजर रही है, उनके लिए सब्र और जब्त की हांक लगाना आसान है, लेकिन जिनकी जिंदगी का हरेक दिन एक नई मुसीबत हैं, वह नजात को अपनी जनवासी चाल से आने का इंतजार नहीं कर सकते। यह उसे खींच लाना चाहते हैं, औ जल्द-से-जल्द ।

"मगर नजात के पहले कयामत आएगी, यह भी याद रहे।"

"हमारे लिए यह अंधेर ही कयामत है जब पैदावार लागत से भी कम हो, तो लगान की गुंजाइश कहां? उस पर भी हम आठ आने पर राजी थे। मगर बारह आने हम किसी तरह नहीं दे सकते। आखिर सरकार किफायत क्यों नहीं करती? पुलिस और फौज और इंतजाम