पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४६१

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कर्मभूमि:461
 

कर्मभूमि : 46i में होती। समरकान्त यह बमगोला खाकर भी परास्त न हुए-तुम्हारे जब्त की बानगी देखे ॥ रहा हूँ बेटा, अब मुंह न खुलवाओ। वह अगर जाहिल बेसमझ औरत थी, तो तुम्हीं ने आलिम- फाजिल होकर कौन-सी शराफत की? उसकी सारी देह लहू-लुहान हो रही है। शायद बचेगी भी नहीं। कुछ याद है कितने आदमियों के अंग-भंग हुए? सब तुम्हारे नाम की दुआएं दे रहे हैं। अगर उनसे रुपये न वसूल होते थे, तो बेदखल कर सकते थे, उनकी फसल कुर्क कर सकते थे। मार-पीट को कानूनी कहां से निकला? | "बेदखली से क्या नतीजा, जमीन का यहां कौन खरीददार है? आखिर सरकारी रकम कैसे वसूल की जाए। "तो मार डालो सारे गांव को, देखो कितने रुपये वसूल होते हैं। तुमसे मुझे ऐसी आशा न थी, मगर शायद हुकूमत में कुछ नशा होता है। | "आपने अभी इन लोगों को बट्माशी नहीं देखी। मेरे साथ आए तो मैं सारी दास्तान सुनाऊ आप इस वक्त आ कहां से रहे हैं? | समरकान्त ने अपने लखनऊ आने और सुखदा से मिलने का हाल कही। फिर मतलब की बात छेडी--अमर तो यहीं होगा? मुना, तीसरे देरजे में रखा गया है। अंधेरा ज्यादा हो गया था। कुछ ठंडे भी पड़ने लगी थी। चार मवार तो गांव की तरफ चले गए, सलीम घोर्ड की रस थामे हुए पांव-पांव समरकान्त के साथ डाक बंगले चला। कुछ दूर चलने के बाद समरकान्त बोले-तुमने दोस्त के साथ खूब दोस्ती निभाई। जेल भेज दिया, अच्छा किया, मगर कम-से-कम उसे कोई अच्छा दरजा तो दिला देते। मगर हाकिम ठहरे, अपने दोस्त की सिफारिश कैसे करते? सलीम ने व्यथित कंठ से कहा-आप तो लालाजी, मुझी पर सारा गुस्सा उतार रहे हैं। मैंने तो दूसरा दर्जा दिला दिया था, मगर अमर खुद मामूली कैदियों के साथ रहने पर जिद करने लगे. तो मैं क्या करता? मेरी बदनसीबी है कि यहां आते ही मुझे वह सब कुछ करना पड़ा, जिससे मुझे नफरत थी। डाक बंगले पहुंचकर सेठजी एक आरामकुरसी पर लेट गए और बोले-तो मेरा यहां आना व्यर्थ हुआ। जब वह अपनी खुशी से तीसरे दरजे में है, तो चारी है। मुलाकात हो जाएगी? सलीम ने उत्तर दिया- मैं आपके साथ चलूंगा। मुलाकात की तारीख तो अभी नहीं आई है, मगर जेल वाले शायद मान जाएं। हां, अंदेशा अमर की तरफ से है। वह किसी किस्म की रिआयत नहीं चाहते। उसने जरा मुस्कराकर कहा-अब तो आप भी इन कामों में शरीक होने लगे? सेठजी ने नम्रता से कहा-अब मैं इस उम्र में क्या काम करूंगा। बूढे दिल में जवानी को जोश कहां से आए? बहू जेल में है, लड़का जेल है, शायद लड़की भी जल की तैयारी कर रही है और मैं चैन से खाता-पीता हूं। आराम से सोता हूं। मेरी औलाद मेरे पापों का प्रायश्चित कर रही है, मैंने गरीबों का कित्तुना खून चूसा है, कितने घर तबाह किए हैं। उसकी याद करके खुद शर्मिदा हो जाती हैं। अगर जवानी में मसझ आ गई होती, तो कुछ अपना सुधार करता। अब क्या करूंगा? बाप संतान का गुरु होता है। उसी के पीछे लड़के चलते हैं। मुझे