पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/४६३

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कर्मभूमि:463
 

कर्मभूमि : 463 भी वसूल कर सकते हो। जो भूखों मरने हैं, चिथड़े पहनकर और पुआल में सोकर दिन काटने हैं उनसे एक पैसा भी दबाकर लेना अन्याय है। जब हम और तुम दो-चार घंटे आरमि से कम करके आराम से रहना चाहते हैं, जासटें बनाना चाहते हैं, शौक की चीजें जमा करते हैं, तो क्या यह अन्याय नहीं है कि जो लोग मंत्री -बच्च ममत अठारह घंटे रोज काम करें, वह रोटी-- कपड़े को तरसे? बेचारे गरीब हैं, वेजबान हैं, अपने को संगठित नहीं कर सकते, इमलिए सभी छोटे-बड़े उन पर रोब जमाते हैं। मगर तुम जैम सहदट और विद्वान् लोग भी वही करने लगे, जो मामनी अमले करते हैं, तो अफसोस होता है। अपने साथ किसी को मन लो, मी माध चलो। मैं जिम्मा लेता हूं कि कोई तुम गुप्ताबी न करे। उनके जख्म पर मरहम रख दो, में इतना ही चाहता है। जब तक नि बार तुम्हें याद करते। पदभाव में मम्भाहन को सा अमर होता है। सलीम का हृदय अभी इन्-ना कन! न ह ४ कि 'द पर क्राईम ही ; चन्दतः। पकचाता हु अ बोला--रि तरफ से आए हैं? को 47 पड़ा। "हा हांयह सब में कह दूंगा, भकिन ; न हा, मैं उधर चलू इधर तुम हटरबाजी शुरू करो।' “अब ज्यादा शर्मिदः न कीnि।' न राष्ट्र तजवीज क्यों नही करते हैं, माघ का ग्लन १ ३ का जाय। अगर बंद करके हुक्म मानन म्हारा काम हां, हमें अपना मन तो कर ना + 4 बईमाफी न नहीं कर रहे हो? तुम्न ग्बुद र रिपो २ नहीं लिखते? मुमकिन है हुक्माम इसे पसंद - करं, लेकिन हक के लिए कुछ नपान नाना पट्ट. तो क्या न्त्रता? सन्म को यह बातें न्याय मात्र न पड़ी। र' की पत्नी नोक जर्मन के अंदर पहुच चुकी थी। बा.-३म बुजुर्गाना माह के लिए आपका एहसानमंद है और उस पर अमल करन की कोशिश की । भोजन की ममय आ गया है। लोम् न - आपके लिए क्या ना जनवाउ, " जो चाहे बनवाओ, पर टा यद वो कि में हिन्दू है और इरान जभान का आदमी है। अभी तक इन छात को मान! ।' "शप कृत - छान को अन्छा मुन्नत हैं " अन्डा ना नहीं ममता पर पता है। तव मानते ही क्यों है? "मला कि संस्कारों को मिटा मुश्किल हैं। अगर जरूरत पड़े, तो में जम्हारा मन उठाकर फेंक देगा, लेकिन तुम्हारो थाली में मुझस ने खाया जाएगा।

  • ' में तो आज आपको अपने साथ बेटा खिला?

'तुम प्याज़, मास, अंई खाते हो। मुझसे जो उन बातों में वाया ही न जाएगा। "आप गह सब कुछ न खाएगई मगर मर साथ बेटना पड़ेगा। मैं रोज साबुन लगाव नहाता है। वरतों को खूब साफ कर लेनः। "आपका खाना हिन्दु बनाएगा, उहब ! बस एक मेज पर बैठकर खा लेना। "अच्छा खा लूंगा, भाई । में दृध और घी सृव रखता है।