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गबन : 55
 

रमानाथ-मुझसे साफ जवाब न देते बनेगा। दुनिया भर की खुशामद करेगा। चुनी चुना-आप बड़े आदमी हैं, रईस हैं, राजा हैं। आपके लिए डेढ़ सौ क्या चीज है। मैं उसकी बातों में आ जाऊंगा।

जालपा–अच्छा, चलो मैं ही कहे देती हूं।

रमानाथ-वाह, फिर तो सब काम ही बन गया।

रमा पीछे दुबक गया। जालपा दालान में आकर बोली- जरा यहां आना जी, ओ सर्राफ । लूटने आए हो, या माल बेचने आए हो । चरनदास बरामदे से उठकर द्वार पर आया और बोला-क्या हुक्म है, सरकार?

जालपा–माल बेचने आते हो, या जटने आते हो? सात सौ रुपये कंगन के मांगते हो?

चरनदास-सात सौ तो उसको कारीगरी के दाम हैं, हुजूर ।

जालपा–अच्छा तो जो उस पर सात सौ निछावर कर दें, उसके पास ले जाओ। रिंग के डेढ़ सौ कहते हो, लूट है क्या? मैं तो दोनों चीजों के सात सौ से अधिक न दूंगी।

चरनदास-बहूजी, आप तो अंधेर करती हैं। कहां साढ़े आठ सौ और कहां सात सौ?

जालपा–तुम्हारी खुशी, अपनी चीज ले जाओ।

चरनदास-इतने बड़े दरबार में आकर चीज लौटा ले जाऊं? आप या ही पहनें। दस-पांच रुपये की बात होती, तो आपकी ज़बान से फेरता। आपसे झठ नहीं कहता बहूजी, इन चीजों पर पैसा रुपया नफा है। उसी एक पैसे में दुकान का भाड़ा, बट्टा-खाता, दस्तूरी, दलाली सब समझिए। एक बात ऐसी समझकर कहिए कि हमें भी चार पैसे मिल जाएं। सवेरे-सवेरे लौटना ने पड़े।

जालपा-कह दिए,वहीं सात सौ।

चरनदास ने ऐसा मुंह बनाया, मानो वह किसी धर्म-संकट में पड़ गया है। फिर बोला-सरकार हैं तो घाटा ही, पर आपकी बात नहीं टालते बनती। रुपये कब मिलेंगे?

जालपा-जल्दी ही मिल जायंगे।

जालपा अंदर जाकर बोली-आखिर दिया कि नहीं सात सौ में डेढ़ सौ साफ उडाए लिए जाता था। मुझे पछतावा हो रहा है कि कुछ और कम क्यों न कही। वे लोग इसी तरह गाहकों को लूटते हैं।

रमा इतना भारी बोझ लेते घबरा रहा था, लेकिन परिस्थिति ने कुछ ऐसा रंग पकड़ा कि बोझ उस पर लद ही गया।

जालपा तो खुशी की उमंग में दोनों चीजें लिए ऊपर चली गई, पर रमा सिर झुकाए चिंता में डूबा खड़ा था। जालपा ने उसकी दशा जानकर भी इन चीजों को क्यों ठुकरा नहीं दिया, क्यों जोर देकर नहीं कहा मैं न लेंगी, क्यों दुविधे में पड़ी रही। साढ़े पांच सौ भी चुकाना मुश्किल था, इतने और कहां से आएंगे। असल में गलती मेरी ही है। मुझे दलाल को दरवाजे से ही दुत्कार देना चाहिए था।

लेकिन उसने मन को समझाया। यह अपने हो गों का तो प्रायश्चित है। फिर आदमी इसीलिए तो कमाता है। रोटियों के लाले थोड़े ही थे?

भोजन करके जब रमा ऊपर कपड़े पहनने गया, तो जलपा आईने के सामने खड़ी कानों में रिंग पहन रही थी। उसे देखते ही बोली-आज किसी अच्छे का मुंह देखकर उठी थी। दो