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अठारहवाँ अध्याय

इतनी कथा सुन राजा परीक्षित ने श्रीशुकदेवजी से पूछा― महाराज, रौनक दीप तो भली और थी, काली वहाँ से क्यों आया औ किसलिये जमुना में रहा, वह मुझे समझाकर कही जो मेरे मन का संदेह जाय। श्रीशुकदेव बोले―राजा, रौनक दीप में हरि को बाहन गरुड़ रहता है सो अति बलवंत है, तिससे वहाँ के बड़े बड़े सर्पों ने हार मान विसे एक साँप नित देना किया। एक रूख पर धर आवे, वह आवे औ खा जाय। एक दिन कद्रू, नागनी का पुत्र काली अपने विष का घमंड कर गरुड़ का भक्ष खाने गया। इतने में वहाँ गरुड़ आया और दोनों में अति युद्ध हुआ। निदान हार मान काली अपने मन मे कहने लगी कि अब इसके हाथ से कैसे बचूँ और कहाँ जाऊँ। इतना कह सोचा कि बूंदाबन में जमुना के तीर जा रहूँ तो बचूँ, क्योंकि यह वहाँ नहीं जा सकता। ऐसे विचार काली वहाँ गया। फिर राजा परीक्षित ने शुकदेव मुनि से पूछा कि महाराज, वह वहाँ क्यो नही जा सकता था सो भेद कहो। शुकदेव जी बोले―राजा, किसी समय जमुना के तट सौभरि ऋषि बैठे तप करते थे, तहाँ गरुड़ ने जाय एक मछली मार खाई, तब ऋषि ने क्रोध कर उसे यह श्राप दिया कि तू इस ठौर फिर आवेगा तो जीता न रहेगा। इस कारण वह वहाँ न जा सकती था, और जब से काली वहाँ गया तभी से विस स्थान का नाम कालीदह हुआ।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी बोले―हे राजा जब श्रीकृष्ण-