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पृष्ठ:प्रेमसागर.pdf/११४

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बाईसवाँ अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले कि हे महाराज, इतनी बात कह श्रीकृष्ण फिर ग्वाल बाल साथ ले लीला करने लगे। और जबलप कृष्ण बन में धेनु चरावै, तबलग सब गोपी घर में बैठी हरि का जस गावैं, एक दिन श्रीकृष्ण ने बन मे बेनु बजाई तो बंशी की धुन सुन सारी ब्रज युवती हड़बड़ाय उठ धाई। औ एक ठौर मिलकर बाट में आ बैठीं, तहाँ आपस में कहने लगीं कि हमारे लोचन सुफल तब होगे जब कृष्ण के दरसन पावेगे, अभी तो कान्ह गायो के साथ बन में नाचते गाते फिरते हैं, साँझ समय इधर आवेगे, तब हमे दरसन मिलेगे। यो सुन एक गोपी बोली―

सुनो सखी, वह बेनु बजाई। बॉस बंस देखौ अधिकाई॥

इसमें इतना क्या गुन है जो दिन भर श्रीकृष्ण के मुँह लगी रहती है, ओर अधरामृत पी आनंद बरस घन सी गाजत है। क्या हमसे भी वह प्यारी, जो निस दिन लिये रहते हैं बिहारी।

मेरे आगे की यह गढ़ी। अब भई सौत बदन पर चढ़ी॥

जब श्रीकृष्ण इसे पीतांबर से पोछ बजाते है तब सुर, मुनि, किन्नर औ गंधर्व अंपनी अपनी स्त्रियों को साथ ले बिमानो पर बैठे बैठे होसकर सुनने को आते हैं, औ सुनकर मोहित हो जहाँ के तहाँ चित्र से रह जाते है। ऐसा इसने क्या तप किया है जो सब इसके आधीन होते है।