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इतनी बात सुन एक गोपी ने उत्तर दिया, कि पहले तो इसने बाँस के बंस में उपज हरि को सुमरन किया, पीछे घाम, सीत, जल ऊपर लिया, निदान टूक टूक हो देह जलाय धुँँआ पिया-

इससे तप करते हैं कैसा । सिद्ध हुई पाया फल ऐसा ।।

यह सुन कोई व्रजनारी बोली कि हमको बेनु क्यों न रची, ब्रजनाथ, जो निसि दिन हरि के रहती साथ। इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित से कहने लगे कि महाराज, जबतक श्रीकृष्ण धेनु चराय बन से न आवें, तबतक नित गोप हरि के गुन गावे ।