श्रीशुकदेवजी बोले कि हे राजा, जैसे श्रीकृष्णचंद ने गिर गोवर्धन उठाया औ इन्द्र का गर्व हरा, अब सोई कथा कहता हूँ तुम चित दे सुनो, कि सब ब्रजबासी बरसवें दिन कातिक बदी चौदस को न्हाय धोय केसर चंदन से चौक पुराय भाँति भाँति की मिठाई औ पकवान धर, धूप दीप कर इन्द्र की पूजा किया करे। यह रीति उनके यहाँ परंपरा से चली आती थी। एक दिन वही दिवस आया, सब बंदजी ने बहुतसी खाने की सामग्री बनवाई औ सब ब्रजवासियों के भी घर घर सामग्री भोजन की हो रही थी। तहाँ श्रीकृष्ण ने आ मा से पूछा कि भाजी, आज घर भर मैं पकवान मिठाई जो हो रही है सो क्या है, इसका भेद मुझे समझाकर कहो जो मेरे मन की दुवधा जाय। जसोदा बोली कि बेदा, इस समै मुझे बात कहने का अवकाश नहीं, तुम अपने पिता से जो पूछो वे बुझायकर कहेगे। यह सुन नंद उपनंद के पास आय श्रीकृष्ण ने कहा कि पिता, आज किस देवता के पूजने की ऐसी धूम धाम है कि जिनके लिये घर घर पकवान मिठाई हो रही है, वे कैसी भक्ति मुक्ति बर के दाता हैं, विनका नाम औ गुन कहो जो मेरे मन का संदेह जाय।
नंदमहर बोले कि पुत्र यह भेद तूने अब तक नहीं समझा कि मेघों के पति जो हैं सुरपति, तिनकी पूजा है, जिनकी कृपा से संसार में रिद्धि सिद्धि मिलती है औ तृन, जल, अन्न होता है, बन उपबन फूलते फलते हैं, विनसे सब जीव, जंतु, पशु, पक्षी