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तुम नारायन हो, भूमि का भार उतारने को संसार में जन्म ले आए हो।
श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, जब ब्रजवासियों ने इतनी बात कही तभी श्रीकृष्णचंद ने सबको मोहित कर, जो बैकुंठ की रचना रची थी सो उठाय ली औ अपनी भाया फैलाय दी, तो सब गोपो ने सपना सा जाना और नंद ने भी माया के बस हो श्रीकृष्ण को अपना पुत्र ही कर माना।