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कँवल को पाता, और गोपियों की उत्पत्ति तो मैं तुम्हें पहले ही सुना चुका हूँ कि देवी औ वेद की ऋचाएँ हरि का दरस परस करने को व्रज में जन्म ले आई हैं औ इसी भाँति श्रीराधिका भी ब्रह्मा सै बर पाय श्रीकृष्णचंद की सेवा करने को जन्म ले आई और प्रभु की सेवा में रही।

इतना कह श्रीशुकदेवजी बोले–महाराज, कहा है कि हरि के चरित्र मान लीजे पर उनके करने में मन न दीजे। जो कोई गोपीनाथ का जस गाता है सो निर्भय अटल परम पद पाता है, औ जैसा फल होता है अठसठ तीरथ के न्हाने में, तैसा ही फल मिलता है श्रीकृष्ण जस गाने में।


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