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नंद उपनंद गोपो समेत बकरे भैसे ले भेंट देने लावरो, तिनके साथ देखने को कृष्ण बलदेव भी आवेगे। यह तो मैंने तुम्हें उनके लावने का उपाय बता दिया, आगे तुम सज्ञान हो, जो और उकत बनि आवे सो करि कहियो, अधिक तुमसे क्या कहें। कहा है―

होय बिचित्र बसीठ, जाहि बुद्धि बल आपनौ।
पर कारज पर ढीठ, करहि भरोसो ता तनौ॥

इतनी बात के सुनतेही पहले तो अक्रूर ने अपने जी में विचारा कि जो मैं अब इसे कुछ भली बाल कहूँगा तो यह न मानेगा, इससे उत्तम यही कि इस समय इनके मनभाती सुहार्ती बात कहूँ। ऐसे और भी ठौर कहा है कि वही कहिए जो जिसे सुहाय। यो सोच विचार अक्रूर हाथ जोड़ सिर झुकाय बोला―महाराज, तुमने भला मता किया, यह वचन हमने भी सिर चढ़ाय लिया, होनहार पर कुछ बस नहीं चलता। मनुष्य अनेक मनोरथ कर धावता है, पर करम का लिखा ही फल पावता है। आगम बाँध तुमने यह बात विचारी है, न जानिए कैसी होय, मैंने तुम्हारी बात मान ली, कल भोर को जाऊँगा औ रामकृष्ण को ले आऊँगा। ऐसे कह कंस से बिदा हो अक्रूर अपने घर आया।