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महाराज, अक्रू रजी तो एक ही मूरत बाहर भीतर देख सोचतेही थे, कि इस बीच पहले तो श्रीकृष्णचंदजी ने चतुर्भुज हो शंख, चक्र, गदा, पद्म, धारन कर, सुर, मुनि, किन्नर, गंधर्व, आदि सब भक्तो समेत जल में दरसन दिया औ पीछे शेषशाई हो। तो अक्रूर देख और भी भूल रहा।