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पाछें प्रगट फेर हरि टेन्यो। बलदाऊ आगे तें घेन्यो॥
लागे गजहिं खिलावन दोऊ। भौचक रहे देख सत्र कोऊ।

महाराज, उसे कभी बलराम सूँड़ पकड़ खैंचते थे, कभी स्याम पूँछ पकड़ और जब वह इन्हें पकड़ने को जाता था तब ये अलग हो जाते थे। कितनी एक बेर तक उससे ऐसे खेलते रहे। जैसे बछड़ो के साथ बालकपन में खेलते थे। निदान हरि ने पूँछ पकड़ फिराय उसे दे पटका औ मारे घूसों के मार डाला। दाँत उखाड़ लिये तब उसके मुँह से लोहू नदी की भाँति बह निकला। हाथी के मरतेही महावत ललकार कर आया। प्रभु ने उसे भी हाथी के पाँव तले झट मार गिराया, औ हँसते हँसते दोनो भाई नटवर भेष किये एक एक दाँत हाथी की हाथ में लिये, रंगभूमि के बीच जा खड़े हुए। उस काल नंदलाल को जिन जिनने जिस जिस भाव देखा उस उसको विसी विसी भाव से दृष्ट आए। मल्लो ने मल्ल माना, राजाओं ने राजा जाना, देवताओं ने अपना प्रभु बूझा, ग्वालबाली ने सखा, नंद उपनंद ने बालक समझा औ पुर की युवतियों ने रूपनिधान, औ कंसादिक राक्षसों ने काल समान देखा। महाराज, इनको निहारते ही कंस अति भयमान हो पुकारा-अरे मल्लो, इन्हें पछाड़ मारो, कै मेरे आगे से टालो।

इतनी बात जो कंस के मुँह से निकली तो सब मल्ल गुरु सुत चेले संग लिये, बरन बरन के भेष किये, ताल ठोक ठोक भिड़ने को श्रीकृष्ण बलराम के चारो ओर घिर आए। जैसे वे आए तैसे ये भी सँभल खड़े हुए, तब उनमें से इनकी ओर देख चतुराई कर चानूर बोला―सुनौ आज हमारे राजा कुछ उदास हैं इससे जी बहलाने को तुम्हारा युद्ध देखा चाहते हैं, क्योकि तुमने बन में