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रह सब विद्या सीखी है और किसी बात का मन में सोच न कीजे, हमारे साथ मल्लयुद्ध कर अपने राजा को सुख दीजे।

श्रीकृष्ण बोले―राजाजी ने बड़ी दया कर हमें बुलाया है आज, हमसे क्या सरेगा इनका काज, तुम अति बली गुनवान, हम बालक अजान, तुमसे हाथ कैसे मिलावें। कहा है, व्याह बैर औ प्रीति समान से कीजे, पर राजाजी से कुछ हमारा बस नहीं चलता इससे तुम्हारा कहा मानते हैं। हमें बचा लीजो बलकर पटक न दीजो। अब हमें तुम्हें उचित है जिसमें धर्म रहे सो कीजिये औ मिलकर अपने राजा को सुख दीजिये।

सुनि चानूर केहै भय खाय। तुम्हरी गति जानी नहि जाय॥
तुम बालक मानस नहि दोऊ। कीन्हे कपट बली ही कोऊ॥
खेलत धनुष खंड द्वै कन्यो। मारयो तुरत कुबलिया तन्यो॥
तुम सो लरे हानि नहि होइ। या बाते जाने सब कोइ॥


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