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अनेक जन्म औतार ले बहुतेरा कुछ दीजिये तौ भी विद्या का पलटा न दिया जाय, पर आप हमारी शक्ति देख गुरु दक्षिाना की आज्ञा कीजे, तो हम यथाशक्ति दे असीस ले अपने घर जायँ।

इतनी बात श्रीकृष्ण बलराम के मुख से निकलते ही, सांदीपन ऋषि वहाँ से उठ सोच विचार करता घर भीतर गया, औ विसने अपनी स्त्री से इनका भेद यो समझा कर कहा, कि ये राम कृष्ण जो दोनो बालक हैं सो आदिपुरुष अविनाशी है, भक्तो के हेतु अवतार ले भूमि का भार उतारने को संसार में आए हैं, मैने इनकी लीला देख यह भेद जाना क्योकि जो पढ़ पढ़ फिर फिर जन्म लेते हैं, सो भी विद्यारूपी सागर की थाह नहीं पाते, औ देखो इस बाल अवस्था से थोड़ेही दिनो मे ये ऐसे अगम अपार समुद्र के पार हो गये। ये जो किया चाहै सो पल भर में कर सकते है। इतना कह फिर बोले

इन पै कहा मोंगिये नारि। सुन के सुंदरि कहै विचारि॥
मृतक पुत्र मॉगौ तुम जाय। जो हरि हैं तो दैहैं ल्याय॥

ऐसे घर में से बिचारकर, सांदीपन ऋषि स्त्री सहित बाहर जय श्री कृष्ण बलदेवजी के सनमुख कर जोड़ दीनता कर बोले―महाराज, मेरे एक पुत्र था, तिसे साथ ले मैं कुटुंब समेत एक पर्व मे समुद्र न्हान गया था, जो वहाँ पहुँच कपड़े उतार सब समेत तीर में नहाने लगा, तो सागर की एक बड़ी लहर आई, विसमें मेरा पुत्र बह गया, तो फिर न निकला, किसी मगर मच्छ ने निगल लिया, विसको दुख मुझे बड़ा है। जो आप गुरुदक्षिना दिया चाहते है तो वही सुत ला दीजे, औ हमारे मन का दुख दूर कीजे।