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इससे मनुप को चिंता करनी उचित नहीं, क्यौकि चिंता किये से कुछ हाथ नहीं आता, केवल जित्त को दुख देना है।

महाराज, जद ऐसे समझाय बुझाय अक्रूरजी ने कुंती से कहा, तद वह सोच समझ चुप हो रही, औ इनकी कुशल पूछ बोली―कहो अक्रूरजी, हमारे माता पिता औ भाई बसुदेवजी कुटुम्ब समेत भले हैं, औ श्रीकृष्ण बलराम कभी भीम, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, इन अपने पाँचो भाइयो की सुध करते हैं? ये तो यहाँ दुखसमुद्र में पड़े हैं, वे इनकी रक्षा कब आय करेगे हमसे अब तो इस अन्ध धृतराष्ट्र का दुख सहा नहीं जाता, क्योंकि वह दुर्योधन की मति से चलता है। इन पॉचो को मारने के उपाय में दिन रात रहता है। कई बेर तो विष घोल दिया सो मेरे भीमसेन ने पी लिया।

इतना कह पुनि कुंती बोली कि कहो अक्रूरजी, जब सब कौरव यो बैर किये रहैं, तब ये मेरे बालक किसका मुँँह चहै। औ मीच से बच कैसे होयँ सयाने, यही दुख बड़ा है हम क्या बखाने। जो हरनी झुंड से बिछड़ करती है त्रास, तो मै भी सदा रहती हूँ उदास। जिन्होने कंसादिक असुर संहारे, सोई हैं मेरे रखवारे।

भीम युधिष्ठिर अर्जुन भाई। इनकौ दुख तुम कहियौ जाई॥

जब ऐसे दीन हो कुंती ने कहे बैन, तब सुनकर अक्रूर ने भर लिए नैन। औ समझाके कहने लगा कि माता तुम कुछ चिंता मत करो। ये जो पॉचो पुत्र तुम्हारे है, सो महाबली जसी होगे। शत्रु ओ दुष्टो को भार करेगे निकन्द, इनके पक्षी हैं श्रीगोविद। यो कह फिर अक्रूरजी बोले कि श्रीकृष्ण बलराम ने मुझे