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उचित यही है कि बिलंब न कीजे, शीघ्र श्रीकृष्णचंद से रुक्मिनी का ब्याह कर दीजे। महाराज, यह बात हर चुकी थी, इसमें रुक्म ने भाँजी मार रुक्मिनी की सगाई सिसुपाल से की। अब वह सब असुर दल साथ ले व्याहन को चढ़ा है।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी बोले कि पृथीनाथ, ऐसे उस ब्राह्मन ने सब समाचार कह, रुक्मिनजी की चीठी हरि के हाथ दी। प्रभु ने अति-हित से पाती ले छाती से लगाय ली, औ पढ़- कर प्रसन्न हो ब्राह्मन से कहा―देवता, तुम किसी बात की चिंता मत करो मैं तुम्हारे साथ चल असुरो को मार उनका मनोरथ पूरा करूँगा। यह सुन ब्राह्मन को तो धीरज हुआ पर हरि रुक्मिनी का ध्यान कर चिंता करने लगे।



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