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बोला कि कृपानाथ, आज व्याह का पहला दिन है, राजमन्दिर में बड़ी धूमधाम हो रही है, मैं जाता हूँ पर रुक्मिनीजी को अकेली पाय आपके आने का भेद कहूँगा। यो सुनाय ब्राह्मन वहाँ से चला। महाराज, इधर से हरि तो यो चुपचाप अकेले पहुँचे औ उधर से राजा सिसुपाल जरासन्ध समेत सच असुरदल लिये, इस धूम से आया कि जिसका वारापार नहीं औ इतनी भीड़ संग कर लाया कि जिसके बोझ से लगा सेसनाग डगमगाने औ पृथ्वी उथलने। उसके आने की सोध पाय राजा भीष्मक अपने मंत्री औ कुटुंब के लोगो समेत आगू बढ़ लेने गये और बड़े अदर मान से अगोनी कर सबको पह- रावनी पहराय रत्नजटित शस्त्र, आभूपन औ हाथी घोड़े दे उन्हें नगर में ले आए औ जनवासा दिया, फिर खाने पीने का सामान किया।

इतनी कथा सुनाये श्रीशुकदेव मुनि बोले, कि महाराज, अब मैं अंतर कथा कहता हूँ आप चित लगाय सुनिये कि जब श्रीकृष्ण- चंद द्वारका से चलें, तिसी समै सच यदुबंसियों ने जाय, राजा उग्रसेन से कहा कि महाराज, हमने सुना है जो कुंडलपुर में राजा सिसुपाल जरासंध समेत सब असुरदल ले ब्याहन आया है और हरि अकेले गये है, इससे हम जानते है कि वहाँ श्रीकृष्णजी से और उनसे युद्ध होगा। यह बात जानके भी हम अजान हो हरि को छोड़ यहाँ कैसे रहैं। हमारा मन तो मानता नहीं, आगे जो आप आज्ञा कीजे सो करे।

इस बात के सुनतेही राजा उग्रसेन ने अति भय खाय, घबराय बलरामजी को निकट बुलाय समझाय के कहा कि तुम