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सौ अपराध क्षमा करिएगा, सो कृपा कर हमें समझाइये जो हमारे मन का संदेह जाय। प्रभु बोले कि जिस समय यह जन्मा था तिस समय इसके तीन नेत्र औ चार भुजा थीं। यह समाचार पाय इसके पिता राजा दमघोषने जोतिषियो औ बड़े बड़े पंडितो को बुलाय के पूछा कि यह लडका कैला हुआ। इसका विंचार कर मुझे उत्तर दो। राजा की बात सुनते ही पंडित औ जोतिषियो ने शास्त्र विचारके कहा कि महाराज, यह बड़ा बली औ प्रतापी होगा और यह भी हमारे विचार में आता है जिसके मिलने से इसकी एक आँख औ दो बॉह गिर पड़ेगी, यह उसी के हाथ मारा जायेगा। इतना सुन इसकी मा महादेवी, सूरसेन की बेटी, वसुदेव की बहन. हमारी फूफी अति उदास भई औ आठ पहर पुत्र ही की चिता में रहने लगी।

कितने एक दिन पीछे एक समै पुत्र जो लिये पिता के घर द्वारका में आई औ इसे सबसे मिलाया। जब यह मुझसे मिला औं इसकी एक ऑख औ दो बाँह गिर पड़ी, तब फूफू ने मुझे वचनबंध करके कहा कि इसकी मीच तुम्हारे हाथ है तुम इसे मत मारियो, मैं यह भीख तुमसे मॉगती हूँ। मैंने कहा―अच्छा सौ अपराध हम इसके न गिनेगे, इस उपरांत अपराध करेगा तो हनेंगे। हमसे यह बचन ले फूफू सबसे बिदा हो, इतना कह पुत्र सर्हित अपने घर गई, कि यह सौ अपराध क्यो करेगा जो कृष्ण के हाथ मरेगा।

महाराज, इतनी कथा सुनाय श्रीकृष्णजी ने सब राजाओं के मन का भ्रम मिटाय, उन लकीरो को गिना जो एक एक अपराध पर खैची थीं। गिनतेही सौ से बढ़ती हुई, तभी प्रभु ने सुदरसन