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बोली की बहन, तुम हमें हमारे कटक समेत जिमाय सको तो नौता दो, नहीं तो न दो ।

महाराज, यह बात सुन रेनुका अपना सा मुँँह ले चुप चाप वहॉ से उठ अपने घर आई। इसे उदास देख यमदग्नि ऋषि ने पूछा कि आज क्या है जो तू अनमनी हो रही हैं। महाराज, बात के पूछते ही रेनुका ने रोकर सब जो की तो बात कही। सुनते ही यमदग्नि ऋषि ने स्त्री से कहा कि अच्छा तू जाय के अभी अपनी बहन को कटक समेत नौत आ। पति की आज्ञा पाय रेनुका बहन के घर जाय नौत आई। उसकी बहन ने अपने स्वामी से कहा कि कल्ह तुम्हें हमें दुल समेत यमदग्नि ऋषि के यहॉ भोजन करने जाना है। स्त्री की बात सुन अच्छी कह वह हँसकर चुप हो रहा। भोर होते ही यमदग्नि उठकर राजा इंद्र के पास गए औ कामधेनु मॉग लाए। पुनि जाय राजा सहस्रार्जुन को बुलाय लाए। वह कटक समेत आया, तिसे यमदग्निजी ने इच्छा भोजन खिलाया।

कुटक समेत भोजन कर राजा सहस्रार्जुन अति लज्जित हुआ औ मन ही मन कहने लगा, कि इसने इतने लोगों के खाने की सामग्री रात भर में कहॉ पाई औ कैसे बनाई, इसका भेद कुछ जाना नहीं जाता। इतना कह बिदा होय उसने घर जाय, यो कह एक ब्राह्मन को भेज दिया कि देवता तुम यमदग्नि के घर जाय इस बात का भेद लाओ कि उसने किसके बल से एक दिन के बीच मुझे कटक समेत नौत जिमाया। इतनी बात के सुनते ही ब्राह्मन ने झट जाय देख आय सहस्रार्जुन से कहा कि महाराज, उसके घर में कामधेनु है उसी के प्रभाव से उसने तुम्हें एक दिन में नौत जिभाया। यह समाचार सुन सहस्रार्जुन ने उसी