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कुछ नहीं। जिधर देखिये तिधर तुमही तुम दृष्ट आते हो। नाथ! तुम्हारी माया अपरंपार है, यही सत रज तम तीन गुन हो तीन सरूप धारन कर सृष्टि को उपजाय, पाल, नाश करती है, इसका भेद न किसीने पाया, न कोई पावेगा। इससे जीव को उचित है कि सब बासना छोड़ तुम्हारा ध्यान करे, इससे उसका कल्यान है। महाराज, इतना प्रसंग सुनाय नर, नारायन ने नारद से कहा कि हे नारद, जब सनंदन मुनि ने पुरातन कथा कह सबके मन का संदेह दूर किया, तब सनकादि मुनियो? ने वेद की विधि से सनंदन मुनि की पूजा की।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि हे राजा, यह नारायन नारद का संवाद् जो कोई सुनेगा सो निस्संदेह भक्ति पदारथ पाय मुक्त होगी। जो कथा पूरन ब्रह्म की वेद ने गाई सोई कथा सनंदन मुनि ने सनकादि मुनियों को सुनाई। धुनि वही कथा नरनारायन ने नारद के आगे गाई, नारद से व्यास ने पाई, व्यास ने मुझे पढ़ाई, सो मैने अब तुम्हैं सुनाई। इस कथा को जो जन सुने सुनावेगा, सो मन मानता फल पावेगा। जो पुन्य होता है तप यज्ञ दान व्रत तीरथ करने में सोई पुन्य होता है इस कथा के कहने सुनने मे।

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