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बुलाय मंगलाचार करवाये और सब ब्राह्मन, पंडित, जोतिषियों को भी अति मान सनमान से बुलवा भेजा। वे आये, राजा ने बड़ी आवभक्ति से आसन दे दे बैठाया। तब जोतिषियो ने लग्न साध मुहूर्त विचारकर कहा―पृथ्वीनाथ, यह लडका कंस नाम तुम्हारे बंस मे उपजा सो अति बलवंत हो राक्षसों को ले राज करेगा और देवता और हरिभक्तों को दुख दे आपका राज ले निदान हरि के हाथ मरेगा।

इतनी कथा कह शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित से कहा― राजा, अब मैं उग्रसेन के भाई देवक की कथा कहता हूँ, कि उसके चार बेटे थे और छः बेटियाँ, सो छओ बसुदेव को ब्याह दीं, सातवीं देवकी हुई जिसके होने से देवताओं को प्रसन्नता भई, और उग्रसेन के भी दस पुत्र, पर सबसे कंस ही बड़ा था। जब से जन्मा तब से यह उपाध करने लगा कि नगर में जाय छोटे छोटे लड़को को पकड़ पकड़ लावै औ पहाड़ की खोह में मुँद मूँद मार मार डाले। जो बड़े होय तिनकी छाती पै चढ़ गला घोट जी निकाले। इस दुख से कोई कहीं न निकलने पावे, सब कोई अपने अपने लड़के को छिपावे। प्रजा कहे दुष्ट यह कंस उग्रसेन का नही है बंश, कोई महा पापी जन्म ले आया है जिसने सारे नगर को सताया हैं। यह बात सुन उग्रसेन ने विसे बुलाकर बहुतसा समझाया पर इसका कहना विसके जी में कुछ भी न आया। तब दुख पाय पछताये के कहने लगा कि ऐसे पूत होने से मैं अपूत क्यों न हुआ।

कहते हैं जिस समै कृपूत घर में आता है तिसी समै जस और धर्म जाता है। जब कंस आठ वर्ष का भया तब मगध देस