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पर चढ़ गया। वहाँ का राजा जरासिधु बड़ा जोधा था तिससे मिल इसने मल्ल युद्ध किया तो उनने कंस का बल लख लिया, तब हार मान अपनी दो बेटियाँ ब्याह दीं, वह ले मथुरा में आया और उग्रसेन से बैर बढ़ाया। एक दिन कोप कर अपने पिता से बोला कि तुम रामनाम कहना छोड़ दो और महादेव का जप करो। विसने कहा―मेरे तो करता दुखहरता वेई है जो विनको ही न भजूँगा तो अधर्मी हो कैसे भवसागर पार हूँगा। यह सुन कंस ने खुनसा बाप को पकड़ कर सारा राज ले लिया और नगर में यों डोडी फेर दी कि कोई यज्ञ, दान, धर्म, तप औ राम का नाम करने न पावे। ऐसा अधर्म बढ़ा कि गौ ब्राह्मन हरि के भक्त दुख पाने लगे और धरती अति बोझो मरने। जब कंस सब राजाओं का राज ले चुका तब एक दिन अपना दल ले राजा इंद्र पर चढ़ चला, तहाँ मंत्री ने कहा―महाराज इंद्रासन बिन तप किये नहीं मिलता। आप बल का गर्व न करिये, देखो गर्व ने रावन कुंभकरन को कैसा खो दिया कि जिनके कुल में एक भी न रहा।

इतनी कथा कह शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहने लगे कि राजा, जद पृथ्वी पर अति अधर्म होने लगा तद दुख पाय घबराय गाय का रूप बुन रॉमती देवलोक में गई और इंद्र की सभा में जा सिर झुकाय उसने अपनी सब पीर कही कि महाराज, संसार में असुर अति पाप करने लगे, तिनके डर से धर्म तो उठ गया औ मुझे आज्ञा हो तो नरपुर छोड़ रसातल जाऊँँ। इंद्र सुन सब देवताओं को साथ ले ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा सुन सबको महादेव के निकट ले गये। महादेव भी सुन्न सबको साथ ले वहाँ गये जहाँ क्षीरसमुद्र में नारायन सो रहे थे। विनको सोता जान