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( १८ )

अति पाप करने लगा तब विष्णु ने अपनी आँखो से एक माया उपजाई, सो हाथ बाँध सन्मुख आई। विससे कहा―तू अभी संसार में जा औतार ले मथुरापुरी के बीच, जहाँ दुष्ट कंस मेरे भक्तों को दुख देता है, और कश्यप अदिति जो बसुदेव देवकी हो ब्रज में गये हैं तिनको मूँद रक्खा है। छः बालक तो विनके कंस ने मार डाले अब सातवे गर्भ में लक्ष्मनजी है, उनको देवकी की कोख से निकाल गोकुल में ले जाकर इस रीति से रोहनी के पेट में रख दीजो कि कोई दुष्ट न जाने, और सब वहाँ के लोग तेरा जस बखाने।

इस भाँति माया को समझा श्रीनारायन बोले कि तू तो पहले जाकर यह काज करके नंद के घर में जन्म ले, पीछे बसुदेव के यहाँ औतार ले मैं भी नंद के घर आता हूँ। इतना सुनते ही माया झट मथुरा में आई और मोहनी का रूप बने असुदेव के गेह में बैठ गई।

जो छिपाय गर्भ हर लिया, जाय रोहनी को सो दिया।
जाने सब पहला आधान, भये रोहनी के भगवान॥

इस रीति से साचन सुदा चौदस बुधवार को बलदेवजी ने गोकुल में जन्म लिया और माया ने बसुदेव देवकी को जो सपना दिया कि मैंने तुम्हारा पुत्र गर्भ से ले जाय रोहनी को दिया है सो किसी बात की चिंता मत कीजो। सुनते ही बसुदेव देवकी जाग पड़े और आपस में कहने लगे कि यह तो भगवान ने भला किया, पर कंस को इसी समै जताया चाहिये नहीं तो क्या जानिये पीछे क्या दुख दे। यो सोच समझ रखवालो से बुझाकर कहा, विन्होने कंस को जा सुनाया कि महाराज देवकी का